दिन ब दिन
सूखती जा रही है
जीवन सरिता
छुटते जा रहे है
कुल-किनारे
समय था तब
समझ न थी
अब समझ है
लग रहा है
समय कम है
न बीते एक
लम्हा भी
तेरी याद बिन
रिक्त न बीते
हे ईश्वर ,
ऐसे ही बीते
तेरे ही गीत
गुनगुनाते
हर पल
हर लम्हा …
7 टिप्पणियां:
किनारे पर कौन बंधा रह पाया है...सबको सागर में मिलना ही है....
बहुत सुन्दर भाव!!!
सादर
अनु
सही है -समय पर होश नहीं आया
होश आया तो समय बीत गया
नई पोस्ट मैं
गहन भाव..... बहुत सुंदर
समय कम है नाम लेते ही बीते, सुंदर प्रस्तुति सुमन जी।
आखिर नदी को सागर की ही तलाश रहती है और अंतत: उसमे विलीन भी हो जाती है, बहुत ही सुंदर और सशक्त भाव.
रामराम.
सादर प्रणाम |
बहुत सुंदर सन्देश युक्त रचना |
मायूस लोग समाज को कुछ नहीं दे पाते , आशाएं बनी रहें ! मंगलकामनाएं !!
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