सोमवार, 20 जुलाई 2009

छा गए बादल

घिर -घिर कर
आ गए बादल
नील गगन में
काले -काले
छा गए बदल !
सर्द हुए हवा के झोंके
कडाद नभ में
बिजली चमके
तप्त धरा की
प्यास बुझाकर
नदियोमे जल भरने
आ गए बादल
छा गए बादल !
वन उपवन में अब
होंगी हरियाली
शुक, पिकी मैनाये
नाच उठेगी
खेत खालिहानोमे
खुशहाली होंगी
गाव -गाव सहर
अमृत जल बरसाने
आ गए बादल
छा गए बादल !
हर्ष -हर्ष कर वर्षा
कुछ ऐसे बरसी
चातक मन तृप्त हुवा
बूंद स्वाती की मोती बनी
मन के आँगन में
छमा छम छम छम
बूंदों के नुपुर
खनका गए बादल
बरस गए बादल !

3 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बेहतरीन चित्रण.

सादर

virendra sharma ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति बूंदों के नुपूर खनका गए बादल .रानी -वर्षा का सजीव चित्रण .प्रकृति का श्रृंगार और मानवीकरण समेटे है सहज सरल कविता .

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर वर्षा का चित्रण