ना कुछ सीखना
ना सम्मर केम्प में जाना
मुझे तो छुट्टियों में
नानी के गावं है जाना !
जहां कल-कल नदी एक बहती
मधुर नाद सुनाती रहती
गीली रेत पर नंगे पैर चलना
ढेर सारी सीपियाँ बटोरना
शीतल स्पर्श वह पानी का
पैरों को गुदगुदाना मछलियों का
आटे की गोलियां बनाबाना कर
उनकों है खिलाना
मुझे तो नानी के गावं है जाना !
हरी भरी जहाँ वनराई
और वनराई में गूंजता है जब चरवाहे के
बंसी का स्वर
नाच उठता मन का मोर
आमों की आमराई ओर
ममता की छावं
भोले भाले लोग
प्यारा प्यारा गावं
डफली की ताल पर
लोक गीत है सुनना
मुझे तो नानी के गावं है जाना !
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3 टिप्पणियां:
आत्मीय संबंधों को दर्शाती सुंदर रचना बधाई
नानी के गांव की महिमा न्यारी है खोई कैम्प इसका मुकाबला नही कर सकता । सुंदर मधुर रचना ।
savendanseel kavita
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