मंगलवार, 10 अगस्त 2010

गीत मेरा अधुरा

अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा,
आज मन बेकाबू होने लगा है!
पंछी बन नभ में उड़ने लगा है!
पवन कलियों को गीत सुनाने लगा है!
ओ झुमझुम कर नाचती बसंती बहारों,
मधुर कंठी कोयल कोई गीत गाओ!
नींद से मुझे अभी तुम न जगाना ,
अभी स्वप्न मेरा अधुरा-अधुरा !
जीवन को साधना भक्ति बना लूँ,
प्रभु प्रेम को मै पूजा बना लूँ !
भाव दीपों को आरती में सजा लूँ,
हे अश्रु सुमनों प्रिय पथ सजाओं !
बिखरे सुर ताल सितार पर संवारो ,
कभी द्वार आकर न तुम लौट जाना!
अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा !!

2 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

सुमन जी ,

मधुर कंठी कोयल कोई गीत गाओ!
नींद से मुझे अभी तुम न जगाना ,
अभी स्वप्न मेरा अधुरा-अधुरा !

सुंदर पंक्तियां!
भावना प्रधान शब्द!
सार्थक कविता!

सुमन जी ,आप ने शायद मेरा
ismatzaidi.blogspot.com
नहीं देखा वहां शब्दों के अर्थ भी हैं ,आप को तकलीफ़ हुई इस का मुझे दुख है

Sunil Kumar ने कहा…

सुंदर भावाव्यक्ति बधाई