आज न चलेगा
तुम्हारा
कोई बहाना
जैसे भी हो
आओ छतपर
देखो
शरद चांदनी खिली है
रात है नशीली
चांदनी
आज मन भी
है नशीला
तुमसे कहने को
बात है
कुछ ख़ास
तनिक बैठो
पास !
कुछ कह लेने दो
कुछ सुन लेने दो
धडकनों को
आपस की बात
आओ
चांदनी ओढ़े
बिछाए चांदनी
हम तुम
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर
मुहब्बत की चांदनी
खिली है !
तुम्हारा
कोई बहाना
जैसे भी हो
आओ छतपर
देखो
शरद चांदनी खिली है
रात है नशीली
चांदनी
आज मन भी
है नशीला
तुमसे कहने को
बात है
कुछ ख़ास
तनिक बैठो
पास !
कुछ कह लेने दो
कुछ सुन लेने दो
धडकनों को
आपस की बात
आओ
चांदनी ओढ़े
बिछाए चांदनी
हम तुम
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर
मुहब्बत की चांदनी
खिली है !
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना
---
यहाँ पधारे-मजदूर
कुछ कह लेने दो
धडकनों को
कुछ सुन लेने दो
..
चांदनी ओढ़े
बिछाए चांदनी
हम तुम
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर
बहुत कुछ कह गई छोटी सी रचना
आज मुहब्बत की चांदनी खिली है
सुनहरी रात भी कुछ नशीली है ....
कोई बात भी कर अब मुहब्बत की
धडकनों ने तेरी आहट सुन ली है .....
आपकी कविता यही कहती है .......
sanjai ji, coral ji,rakesh ji aap sabhi ka bahut bahut sukriya.....aur harkirat ji apki sunder tippaniyonka hamesha tahe dil se swagat hai dhnayavad...............
वाह
पीजीये अंजुली भरभर चांदनी इश्क की
ये खुशगवार मौसम बीत जाये ना कहीं ।
बहुत ही सुंदर ।
बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
आओ
चांदनी ओढ़े
बिछाए चांदनी
हम तुम
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर
मुहब्बत की चांदनी
खिली है !
बहुत सुंदर ...
.....प्रेम की अभिव्यक्ति.....बेहतरीन है...सुंदर रचना!!
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