सुरमई हुआ विशाल अम्बर
तम को हरने आया भास्कर
सजी धजी धरती सुंदर
देती सबको प्रेम निरंतर
ओस बिखरी मोती बनकर
फूल खिले तरु-तरु पर
कोयल गाती गीत मनोहर
खग गण डोलती सुर-तालपर
मंद बहती नदियाँ ,निर्झर
समीर भागे गिरिशिखरोंपर
रुके न यहाँ वहाँ पलभर
पथिक खड़ा हो कोई तटपर
तृषा हरने नील सरोवर
बहर के आया है गुलमोहर
मन्त्रमुग्धता छाई मनपर
जब मन में हो श्रद्दा प्रभुपर
कण-कण में होते उसके दर्शन
तब प्रभु चरणों में झर जाते है
यह भाव सुमन !
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9 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति ....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (29/11/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
सुंद,र सुमन जी सुबह का इतना सुंदर वर्णन प्रक़ति पग पग पर हमें ईश्वर के दर्शन कराती है बस हमें ्नुभव करना आना चाहिये ।
बढ़िया शब्द चयन के साथ बहुत अच्छी लगी यह रचना !
शुभकामनायें
सुन्दर रचना!
सुमन के समधुर भाव-सुमन. सुन्दर रचना...
आदरणीया सुमन जी
नमस्कार !
सुरमई हुआ विशाल अम्बर
तम को हरने आया भास्कर
...........ये लो जी आ गए संजय भास्कर
सुन्दर रचना...
पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें
sabhi bloger mitronka tahe dil se shukriya...........
फूल खिले तरु-तरु पर
कोयल गाती गीत मनोहर
खग गण डोलती सुर-तालपर
बसंत ऋतू का खूबसूरत वर्णन किया है सुमन जी .....
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