मंगलवार, 11 जनवरी 2011

कैक्टस

मन मरू में
कभी
बोये न होंगे
बीज
प्रेम के
तभी तो
आज
उग आये है
कैक्टस !


(२)

एक दिन
बूंद
सागरसे
बिछड़ कर
खूब रोई
पछताई
फिर से
गिरी
बूंद
सागर में
सागर हो गई!



(३)
आधुनिक सभ्यता
जैसे की
गुलदान में
सजे
रंगबिरंगी
कागज के
फूल
ना खुशबु
न महक !

14 टिप्‍पणियां:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

वाह सुमन जी,
आपकी छोटी छोटी कवितायें बड़ी गहरी संवेदना छपाए हुई हैं !

मन मरू में
कभी
बोये न होंगे
बीज
प्रेम के
तभी तो
आज
उग आये है
कैक्टस !

हर कविता जीवन के बिखरते मूल्यों की तड़प की संवाहिका है !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

Sunil Kumar ने कहा…

एक नहीं तीनों रचनाएँ,बहुत सुंदर बधाई तो कम है

***Punam*** ने कहा…

आपकी तीनो कवितायेँ लाजवाब हैं...

"मन मरू में
कभी
बोये न होंगे
बीज
प्रेम के
तभी तो
आज
उग आये है
कैक्टस!"

लेकिन कैक्टस उगने के बाद उसी पर फूल भी चाहता है इंसान..

"एक दिन
बूंद
सागरसे
बिछड़ कर
खूब रोई
पछताई
फिर से
गिरी
बूंद
सागर में
सागर हो गई!"

अस्तित्व कि इससे सुंदर पहचान और क्या होगी!!!!


"आधुनिक सभ्यता
जैसे की
गुलदान में
सजे
रंगबिरंगी
कागज के
फूल
ना खुशबु
न महक !"

लेकिन आधुनिकता के पीछे दौड़ाने वाले हम अपनी ज़िन्दगी में चाहते पुराने मूल्य ही हैं....

सीधे सुंदर शब्दों में सच्ची अभिव्यक्ति....धन्यवाद!!!!

umashankar ने कहा…

bahut sunder..ek-do shabd me pura jhinjhod kar rakh diya aapne..thanks

umashankar ने कहा…

bahut sunder..ek-do shabd me pura jhinjhod kar rakh diya aapne..thanks

nilesh mathur ने कहा…

बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जैसे कि
गुलदान में
सजे
रंगबिरंगी
कागज के
फूल
ना खुशबु
न महक !
सच है आज के रिश्तों में महक कहाँ ....
सुमन जी आपकी क्षणिकायें लिए जा रही हूँ .....

Suman ने कहा…

gyanchand ji,
sunil ji,
punam ji,
umashankar ji,
nilesh ji,
harkirat ji ap sabhi ka aabhar....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया सुमन जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

आपकी रचनाधर्मिता को प्रणाम है । तीनों रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं …

आप सहजता से सुंदर सार्थक कविता सौम्य शिष्ट संस्कारित शब्दों के साथ संक्षेप में कह देती हैं !

>~*~ हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीया सुमन जी
नमस्कार !

छोटी छोटी कवितायें बड़ी गहरी हैं

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं

Amrita Tanmay ने कहा…

आप की रचनाएँ.... गागर में सागर समान है .... बहुत बहुत बधाई ..

Rajesh Kumar 'Nachiketa' ने कहा…

बूँद की व्याकुलता का अच्छा चित्रण...
हर एक बूँद सागर की उम्र बढाती है चाहे वो एक सेकेण्ड के छोटा हिस्सा ही क्यों ना हो.....

Patali-The-Village ने कहा…

बेहतरीन| बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ|