सवेरे-सवेरे
मीठे सपनों में
मै खोई हुयी थी
इस कदर नींद कुछ
गहरा गयी थी
की झटकेसे टूट गयी
ये किसने दी
आवाज मुझ को
सवेरे-सवेरे !
उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिए
हाथ में
किसकी अगवानी में
हवायें मीठी तान सुनाये
पंछी गीत मधुर गायें
दूर-दूर तक राह में
कौन बिछा गया
मखमली चादर हरी
सवेरे-सवरे !
कहो किसके स्वागत में
पलक -पावडे बिछाये
इस किनारे पेड़
उस किनारे पेड़
और बिच पथ पर
लाल पीली कलियाँ
किसने बिछायें है
फूल
सवेरे-सवेरे !
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15 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर कविता. प्रकृति के करीब पहुंचाती, मन में सब चित्रित सा हो जता है....
एक छोटी सी त्रुटी की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा...
"नीचे से चौथी पंक्ति में पीली गलत प्रिंट हो गया है "
आपने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी की उसका धन्यवाद...नयी रचना मेरी कर्म की प्रधानता को लेकर है.....
जब मन करे आपका स्वागत है...
राजेश
rajesh ji dhnyavad print ki truti dhyan dilane ka.........
आपने प्रकृति की गोद में पहुंचा दिया. सच में प्रकृति सुबह सुबह चर्म पर होती है
kisne rachi yah sundar rahna sabere sabere , bahut sundar badhai
Ashaon ki mithi subah ka sundar ahasaas.
Ashaon ki mithi subah ka sundar ahasaas.
aapse yun milna subah ke kalrav me ... sukhad laga
सुमन जी दुआ है उषा स्वर्ण कलश लिए यूँ ही आपको नींद से जगती रहे ....
सुंदर भाव .....
मन की सुखानुभूति का स्पर्श कराते हैं ......
rashmi prbha ji,mere blog par swagat hai apka. dhnyavad..
बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
‘उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिए
हाथ में’
समझ गया... ऊषा आपकी सहेली है ना :)
सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें सुमन जी। वैसे क्या आपने followers का विकल्प नहीं रखा है ताकि आपकी रचनाए नियमित पढ़ सकें?
मैंने अनुसरण कर लिया है। धन्यवाद॥
prasad ji, bahut bahut dhnyavad.
mere blog par swagat hai....
achhee rachnaa hai
badhaaee .
"उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिए
हाथ में"
उस स्वर्ण कलश की बूंदों को जो आत्मसात करता है - निरोगी काया का सुख भोगता है - धन्यवाद्
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