तू बता दे फूल मुझे ..........
मै तुझ सी खिल पाऊं कैसे?
तेरे जीवन पथ पर,
बीछे है कांटे फिर भी
उर में मुस्कान समेटे
पल-पल हवा के झोंके से,
खुशबू जग में ,
बिखराता है तू
तुझ जैसी खुशबु बिखराकर
जीवन को महकाऊ कैसे
तुझ सी खिल पाऊ कैसे?
सुबह को खिलता
साँझ मुरझाता
मंदिर मज़ार पर
बलिदान चढता
कितना सफल है
जीवन तेरा
मुझको खलती मेरी
नश्वरता !
तुझ जैसा बलिदान चढ़ाकर
जीवन को सफल
बनाऊ कैसे ? तुझ सी
खिल पाऊ कैसे?
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17 टिप्पणियां:
jo phulon ko itni bariki se dekh sakta hai, uske liye phulon sa banna kya kathin !... darshnik rachna
एक ही रास्ता है.... बहार हो या खिज़ां .. खिलखिलाते रहिए :)
बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति.
ढेरों बसंतई सलाम.
ये उत्तर मिल जाए तो कहें ही क्या......सब को हंसना आ जाए और सब को खुश रहना..
चौथी पंक्ती में बिछे का बीछे हो गया है लगता है....
हमसे लगता है आपकी कुछ नाराजगी हो गयी है....
वसंत पंचमी की शुभकामना....
तुझ जैसा बलिदान चढ़ाकर
जीवन को सफल
बनाऊ कैसे ?
बहुत सुंदर भाव हैं सुमन जी .....
..दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
बहुत ही कोमल भावनाओं की कोमल रचना..
बहुत ही सुन्दर रचना ...बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें
कई दिनों से बाहर होने की वजह से ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
सुमन जी, प्रश्न आपका मुश्किल नहीं है पर उत्तर बहुत मुश्किल से निकलता है , बधाई
पुष्प का बिम्ब लेकर रची जीवन में झांकती रचना ..... बहुत सुंदर सुमनजी...
sabhi mitronka anek aabhar.....
अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
फूल को समझना और उसकी तरह जीवन जीने की कल्पना से सजी कविता बहुत प्रेरणादायी है
bahut khubshurat bhaw..:)
follow kar raha hoon, aage aate rahunga...:)
mukesh ji,
swagat hai mere blog par........
कुछ अलग सी रचना ... !! शुभकामनायें!
कुछ अलग सी रचना ... !! शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...इस बेहतरीन रचना के लिये बधाई ।
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