सोमवार, 14 मार्च 2011

धरती ने जरा सी करवट बदली है !

विनाशकारी भूकंप ने
चारोओर मचाई तबाही
पल भर में कितनेही
घर-परिवार धरती में
समां गए साथ में लाया
सुनामी भयाक्रांत क्रंदन
देखते ही देखते पानी में,
समाने लगे इन्सान ही
इन्सान !
अपने दरबार में
हजारों की संख्या में
बढती भीड़ को देखकर
अट्टहास कर यमराज ने
काल से पूछा
किसी को छोड़ा भी या
सभी को ले आये हो ?
बदले में काल ने कहा
धरती की अपेक्षा
मेरा तो पराक्रम बहुत
छोटा है उसी की
परिणिति ने ही,आपका
दरबार भर गया है
कहकर काल ने मुस्कुराते
हुए धरती की ओर देखा !
मैंने तो संतुलन बनाये
रखने के लिए जरा सी
करवट क्या बदली है
बढती जा रही भीड़ की
ओर देखते हुए
धरती ने जवाब दिया !

20 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ऊँची इमारतें , कैद हवाएँ ... इस जलजले को रोकना संभव नहीं , और ... आंसू भी सूख चले , दर्द का हाहाकार सुनामी से कम नहीं

Kailash Sharma ने कहा…

मैंने तो संतुलन बनाये
रखने के लिए जरा सी
करवट क्या बदली है
बढती जा रही भीड़ की
ओर देखते हुए
धरती ने जवाब दिया !

प्रकृति के साथ इतना खिलवाड़..कुछ न कुछ तो इस का परिणाम होगा ही...बहुत ही दुखद त्रासदी की ओर इंगित करती मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

ZEAL ने कहा…

सुनामी कि दुखद त्रासदी का मार्मिक चित्रण । डर लग रहा है , आगे क्या होगा ...अभी कहर थमा नहीं है ।

Sunil Kumar ने कहा…

काल के प्रश्न शायद उत्तर नहीं , सुन्दर अभिव्यक्ति , बधाई

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

समसामयिक कविता के लिए बधाई। कल आप की कविता मिलाप में पढी थी :)

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

मैंने तो संतुलन बनाये
रखने के लिए जरा सी
करवट क्या बदली है
बढती जा रही भीड़ की
ओर देखते हुए
धरती ने जवाब दिया !

बहुत सुंदर विचारणीय प्रासंगिक भाव हैं.....

Suman ने कहा…

prasad bhai ji,
bahut bahut aabhar........

Satish Saxena ने कहा…

वाकई ! यह भयावह हादसा, धरती की अंगडाई भी नहीं था , अगर अंगडाई ले ....
शायद उस दिन का नाम ही प्रलय होगा !

संगीता दांडेकर ने कहा…

सुमनजी, आपकी कविता पढकर मैँ भावविभोर हो गई। उस पीडा को आपने अपनी कविता द्वारा पुनः प्रस्तुत किया है। प्रकृति की यह एक अनोखी विडंभना हि कह सकते हैँ।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

अच्छी कविता |होली की इन्द्रधनुषी शुभकामनाएं |

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर विचारणीय प्रासंगिक भाव हैं...

संजय भास्‍कर ने कहा…

कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

Asha Joglekar ने कहा…

मैंने तो संतुलन बनाये
रखने के लिए जरा सी
करवट क्या बदली है
बढती जा रही भीड़ की
ओर देखते हुए
धरती ने जवाब दिया !
Prakruti ki takat ka andaja hum kar hee nahee sakte. Manav apne aap ko bada teesmar khan samazta hai par samay samay par apne baune pan ka ahsas use hota hee hai. Fir bhee......
Samayik aur sateek kawita.

POOJA... ने कहा…

सच ऐसा लगता है जैसे ये धरती का ही जवाब था...
बहुत खूब...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अभी संतुलन कहाँ हुआ है सुमन जी .....

अहसास की परतें - old ने कहा…

कृपया जापान के प्रकृतिक आपदा का उपहास उडाने वालों के विरुद्ध मेरा साथ दे इस पोस्ट पर http://ahsaskiparten-sameexa.blogspot.com/2011/03/blog-post.html

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुंदर विचारणीय प्रासंगिक भाव हैं|
होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

होली की हार्दिक शुभकामनायें.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर!

आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.

सादर

Hemant Kumar Dubey ने कहा…

Earthquake and Tsunami in Japan was just the shifting of earth to get relieve of some pains given by the human population. Rightly expressed. A very meaningful contemporary poem.