सुबह से शाम
चलते-चलते
जब मन
थक जाता है
जग की राहों पर,
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब जाता है
जब मन
जग की बातों से,
बोझ से शब्द जब
भारी-भारी से
लगने लगते है
सर चकराने लगता है
तब-तब
जग के कोलाहल से
दूर ....
शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे ही लगता है
जैसे ....
दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !
15 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर दृष्टांतो द्वारा आपने मन की शांति को दर्शाया है।
कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ध्यान की उसी दुनिया के बारे में कबीर कहते हैं- रस गगन गुफ़ा में अजर झरै....
Bahut Hi sunder.....
शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे ही लगता है
जैसे ....
दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !... बहुत गहरे ख्याल
SUNDAR ABHIWYAKTI.MANWIY SANWEDANAON SAHIT.
केनवास पे उतार दिया है दृश्य जैसे .. फिर माँ की गोद में सो जाने का एहसास ...बहुत खूब ..
मौन की गोद में ही सुखद शान्ति है . सुन्दर रचना..
बहुत ही सुन्दर,,गहन भाव अभियक्ति...
कोमल मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.
वाह!!!
भावों की गहराई में ले गयी कविता...
सुन्दर!!!!
बहुत भावमयी अभिव्यक्ति...
दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !
..sach tab bahut sukun milta hai MAA ko bhi..bahut badiya prastuti
बहुत गहरे भाव ..सुन्दर अभिव्यक्ति...
शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे ही लगता है
जैसे ....
दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !
बहुत सुंदर और सच्चा दृष्टांत ।
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