शनिवार, 24 मार्च 2012

जग के कोलाहल से दूर .........


सुबह से शाम 
चलते-चलते
जब मन
थक जाता है
जग की राहों पर,
सुबह से शाम 
कहते सुनते
उब जाता है
जब मन 
जग की बातों से,
बोझ से शब्द जब
भारी-भारी से 
लगने लगते है
सर चकराने लगता है
तब-तब
जग के कोलाहल से
दूर ....
शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे  ही लगता है 
जैसे ....
दिन भर का 
थका-हारा कोई 
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की 
गोद में आकर 
चुप-चाप सो जाता है
 सुकून से !
 

15 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर दृष्टांतो द्वारा आपने मन की शांति को दर्शाया है।

विभूति" ने कहा…

कोमल भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

कुमार राधारमण ने कहा…

ध्यान की उसी दुनिया के बारे में कबीर कहते हैं- रस गगन गुफ़ा में अजर झरै....

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Bahut Hi sunder.....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे ही लगता है
जैसे ....
दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !... बहुत गहरे ख्याल

Ramakant Singh ने कहा…

SUNDAR ABHIWYAKTI.MANWIY SANWEDANAON SAHIT.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

केनवास पे उतार दिया है दृश्य जैसे .. फिर माँ की गोद में सो जाने का एहसास ...बहुत खूब ..

Amrita Tanmay ने कहा…

मौन की गोद में ही सुखद शान्ति है . सुन्दर रचना..

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही सुन्दर,,गहन भाव अभियक्ति...

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कोमल मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति.

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह!!!

भावों की गहराई में ले गयी कविता...

सुन्दर!!!!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावमयी अभिव्यक्ति...

कविता रावत ने कहा…

दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !
..sach tab bahut sukun milta hai MAA ko bhi..bahut badiya prastuti

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत गहरे भाव ..सुन्दर अभिव्यक्ति...

Asha Joglekar ने कहा…

शब्द,संवादों के
पार
अंतर्लीन हो कर
मौन के गहरे
अतल में डूब जाना
ऐसे ही लगता है
जैसे ....
दिन भर का
थका-हारा कोई
छोटा सा बच्चा
अपनी माँ की
गोद में आकर
चुप-चाप सो जाता है
सुकून से !

बहुत सुंदर और सच्चा दृष्टांत ।