खेल-खेल में समझाए सबको,
एक ऐसी पाठशाला चाहिए हमको
पीठ पर भारी बस्तों का बोझ नहीं,
कभी शिक्षा मन पर भार न हो !
जहाँ ऊँच-नीच का भेद नहीं,
शिक्षा बेचने का व्यापार न हो !
मोटर-गाड़ियों का शोर नहीं,
खेलने - कूदने का मैदान हो !
कक्षा में रैंक का सिस्टम नहीं,
महत्वाकांक्षा की होड़ न हो !
परीक्षाएँ चरित्र की पहचान नहीं,
खेल-खेल में समझाएँ सबको !
एक ऐसी पाठशाला चाहिए हमको !!
15 टिप्पणियां:
काश की ऐसी पाठशाला होती...
बच्चे धन्य हो जाते...
बहुत सुन्दर भाव सुमन जी.
सादर.
एक ऐसी पाठशाला ... जिसमें ज़िन्दगी की मुस्कान हो
मन ऐसी ही पाठशाला में जाने को ललच उठा..
इस तरह से संपूर्ण व्यक्तित्व विकास होगा।
बच्चों के मन की सच्ची सच्ची कही..... सुंदर बाल रचना
ऐसी पाठशाला हो तो क्या बात है. सुंदर रचना.
यह कल्पना साकार हो जाए।
सुंदर कविता।
अब तो यह सब ख़्वाब की बातें लगती हैं। न समय वह रहा,न बच्चे बच्चे रहे।
बच्चों की समस्या पे सही ध्यान दिया है आपने ....
वाकई ऐसी पाठशाला जरूरी है ।
ऐसी पाठशाला भारत में कहाँ ? सुंदर कविता
बहुत सुन्दर रचना..
काश ऐसी पाठशाला बन जाती..
:-)
बहुत सुन्दर भाव सुमन जी
प्रशंसनीय रचना - बधाई
नई पोस्ट ....कहीं ऐसा तो नही पर आपका स्वगत है
आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
कल 14/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
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