शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ऐ चाँद आसमा के...

ऐ चाँद आसमा के
जब भी तुम अपनी 
चांदनी से मिलने 
नील गगन में 
आ जाते हो 
सारा अस्तित्व जैसे 
दुधिया गंगा में 
पोर-पोर 
नहा जाता है 
चटक कर कलियाँ 
फूल बन खिल 
जाती है !
मदमस्त होकर सुरभि 
हवाओं में सौरभ 
भर देती है !
लिये पलकों पर 
स्वप्न सिंदूरी 
चाँद की बांह में 
चांदनी सुरमई 
हो जाती है !
भोर प्रात में जब 
चांदनी से बिछड़ कर 
घडी भर भी रुकते 
नहीं हो न चाँद,
तब धरती के 
पात-पात पर 
शबनम मोती-सी 
बिखर जाती है !
चांदनी के आंसू ही 
शबनम नहीं तो 
और क्या है !

14 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर सुमन जी.....
बहुत प्यारी रचना.

सादर
अनु

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चाँदनी की विरह व्यथा .... बहुत सुंदर रचना

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बेहतरीन बिम्ब चुन रची पंक्तियाँ.....

सदा ने कहा…

वाह ... बेहतरीन ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कितने गहरे अनुपम भाव

Bharat Bhushan ने कहा…

प्रकृति के गहन भावों की सुंदर और गहरी अभिव्यक्ति.

मनोज कुमार ने कहा…

कविता में उस आकाश के चांद को इस धरती की मानवीय संवेदना से जोड़ने प्रयास किया गया है।

कुमार राधारमण ने कहा…

है चांद आज गुमसुम
मुरझाई-सी चांदनी है
है सोच कि ये मिलना
बिछड़ना ही कहानी है?

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... ये शबनम चांदनी के आंसू ही तो हैं ... तभी तो इतने नाज़ुक हैं ... लाजवाब रचना ..

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अच्छी कविता लिखी है आपने, सुमन जी।

Asha Joglekar ने कहा…

चांदनी के सबनमी आंसू वाह क्या बात है सुमन जी ।

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sabhi kavitaayen acchi hain suman jee ....