कंपकपाती
सर्द हवा
शीतल सब
गात है
धरती के
आगोश में
उंघ रही
रात है !
कुछ-कुछ
सोया-सा
तन
कुछ जागा-सा
मन है
निंदियारी
पलकों में
सपनों के
रूप है !
जब भोर
आंख खुली तो,
प्राची में
फैल गए थे
सिंदूरी रंग
धीरे से ...
आंगन में
सरक आयी थी
जाड़े की नर्म
धूप है ....!
10 टिप्पणियां:
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
शानदार कविता बधाई
जाड़े की धूप की तरह उष्मा प्रदान करने वाली कविता!!
बहुत ही सुन्दर रचना...
:-)
जब भोर
आंख खुली तो,
प्राची में
फैल गए थे
सिंदूरी रंग
धीरे से ...
आंगन में
सरक आयी थी
जाड़े की नर्म
धूप है ....!
प्रकृति का सुन्दर चित्रण
सुन्दर रचना
बहुत खूब
इस बार की ठण्ड अपने पूरे शबाब पर है :)
जाड़े की इस नर्म धूप का मज़ा ही अलग है ...
खूबसूरत शेड बनाए हैं ...
आपकी प्रस्तुति निश्चय ही अत्यधिक प्रभावशाली और ह्रदय स्पर्शी लगी ....इसके लिए सादर आभार ......फुरसत के पलों में निगाहों को इधर भी करें शायद पसंद आ जाये
नववर्ष के आगमन पर अब कौन लिखेगा मंगल गीत ?
सर्दी के मौसम की खूबसूरत कविता और नरम धूप से तो मन प्रसन्न हो गया ।
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