जितने चाहो
लिख डालो
प्रेम ग्रंथ
किन्तु,
ढाई अक्षर
प्रेम के
समझ न आते
अक्सर
कहते सुनते
हर बार
मन के भाव
अनकहे ही
रह जाते ....!
***
प्रेम क्या है ?
सदियों से अनेकों ने
अनेकों बार अनेक
रीतियों से,अभिव्यक्तियों से
कहना चाहा
प्रेम की परिभाषा को
किसी ने समझा भी
या नहीं पता नहीं
किस भांति ?
जब भी कहना चाहा
तब शब्दों में कहाँ
व्यक्त हो पाया वो
जो शेष है अभी ....!
10 टिप्पणियां:
इन ढाई अक्षरों में तो सारा जहां समाया है....
कैसे परिभाषित करें इसे!!
सुन्दर अभिव्यक्ति..
सादर
अनु
कहाँ संभव है प्रेम को शब्दों में बाँध पाना .....सुंदर पंक्तियाँ
ये ढाई अक्षर कितने व्यापक हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति
जिसने इसको जान लिया ईश्वर को पहचान लिया
प्रेम शब्दों से नहीं ... मन से व्यक्त होता है ...
समझने वाला समझ जाता है ..
सच ही तो है कौन ,परिभाषित कर पाया है प्रेम को,
और ये ढाई अक्षर अभिव्यक्ति और परिभाषा से परे हैं --इस सुंदर रचना के लिए बधाई -शुभ कामनाएं
अद्भुत रचना | बधाई
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
प्रेम कब व्यक्त हुा है शब्दों में यह तो मन की भाषा है जो आंखों से कही जाये दिल से पढी जाये ।
sunder rachana
सुन्दर बात कही!
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