रविवार, 10 फ़रवरी 2013

ढाई अक्षर प्रेम के ....


जितने चाहो 
लिख डालो 
प्रेम ग्रंथ 
किन्तु, 
ढाई अक्षर 
प्रेम के 
समझ न आते 
अक्सर 
कहते सुनते 
हर बार 
मन के भाव 
अनकहे ही 
रह जाते ....!

    ***
प्रेम क्या है ?
सदियों से अनेकों ने 
अनेकों बार अनेक 
रीतियों से,अभिव्यक्तियों से 
कहना चाहा 
प्रेम की परिभाषा को 
किसी ने समझा भी 
या नहीं पता नहीं 
किस भांति ?
जब भी कहना चाहा 
तब शब्दों में कहाँ 
व्यक्त हो पाया वो 
जो शेष है अभी ....!

10 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

इन ढाई अक्षरों में तो सारा जहां समाया है....
कैसे परिभाषित करें इसे!!

सुन्दर अभिव्यक्ति..
सादर
अनु

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कहाँ संभव है प्रेम को शब्दों में बाँध पाना .....सुंदर पंक्तियाँ

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ये ढाई अक्षर कितने व्यापक हैं .... सुंदर अभिव्यक्ति

Ramakant Singh ने कहा…

जिसने इसको जान लिया ईश्वर को पहचान लिया

दिगम्बर नासवा ने कहा…

प्रेम शब्दों से नहीं ... मन से व्यक्त होता है ...
समझने वाला समझ जाता है ..

Aditi Poonam ने कहा…

सच ही तो है कौन ,परिभाषित कर पाया है प्रेम को,
और ये ढाई अक्षर अभिव्यक्ति और परिभाषा से परे हैं --इस सुंदर रचना के लिए बधाई -शुभ कामनाएं

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

अद्भुत रचना | बधाई

Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

Asha Joglekar ने कहा…

प्रेम कब व्यक्त हुा है शब्दों में यह तो मन की भाषा है जो आंखों से कही जाये दिल से पढी जाये ।

tbsingh ने कहा…

sunder rachana

अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर बात कही!