जैसे ...
आकाश की
पृष्ठभूमि पर
बादल
जैसे ...
सागर की
पृष्ठभूमि पर
लहर
वैसे ही
चेतना की
पृष्ठभूमि पर
विचार ...!
***
सुख के क्षण
सरपट दौड़ते है
दुःख के क्षण
काटे नहीं
कटते
लंगड़ा कर
चलते है
शायद इसे ही
समय सापेक्षता का
सिद्धांत कहते है ...!
15 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी क्षणिकाएं....
सुख के क्षण
सरपट दौड़ते है
दुःख के क्षण
काटे नहीं
कटते
लंगड़ा कर
चलते है
सच्ची....
:-(
सादर
अनु
वाह क्या वैज्ञानिक थ्योरी-
आभार आदरेया -
बहुत खूब ...
दोनों प्रभावी .. सापेक्षता का सिद्धांत रचना पे लागू हो गया ...
bilkul sahi bat...suman jee ...
सहज सरल, अर्थपूर्ण
इन क्षणिकाओं में आपने बहुत ही खूबसूरती से मानव मन को अभिव्यक्त किया है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut hi sundar rachana ....sadar aabhar.
बहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
बधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।
*प्यार भरी होली*
शुभकामनायें !!
क्या बात है! वाह!
बहुत बढ़िया
sabhi lajabab .....badhai Suman ji .
*** सुख के क्षण सरपट दौड़ते है दुःख के क्षण काटे नहीं कटते लंगड़ा कर चलते है शायद इसे ही समय सापेक्षता का सिद्धांत कहते है ...!
बहुत अच्छी क्षणिकाएं....
सुन्दर क्षणिकाएं सुमनजी ...!!!
बहुत खूबसूरत ख्याल. सुन्दर प्रस्तुति.
अति सुन्दर भावभरी रचना के लिए बधाई ।
एक टिप्पणी भेजें