मानसून आते ही
ठंडी-ठंडी हवायें
सरसराने लगती है
हृदयाकाश में छाये
भावों के मेघ
मन की धरती पर
बरसने को उतावले
हो जाते है ...
बारिश की इन
भाव भरी रिमझिम
फुहारों से जब
मन की मिट्टी
गीली होने लगती है
तब बो देती हूँ
इस गीली मिट्टी में
फूलों के
मन पसंद बीज
मन पसंद बीज
और जब यह बीज
टूटकर,गलकर
अंकुरित हो
अंकुरित हो
पौधे हवावों की
सरसराती ताल पर
फूलों सहित
झूम झूम कर नाचने,
गीत गाने लगते है
तब फूलों की
इस सुगंध से
सारा जीवन महकने
लगता है जैसे .....!
( फूलों के बीजों का अभाव है
नहीं तो मिट्टी में भी फूल
छिपे होते है ..)
8 टिप्पणियां:
आपकी यह पोस्ट आज के (०९ मई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - ख़्वाब पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई
मन भी गीली मिट्टी ही है, विचारों के बीज इसी में ही फ़लते फ़ूलते हैं, बहुत ही सुंदर बिंब लिया. शुभकामनाएं.
रामराम.
भाव ऐसे ही जगते हैं और पल्लवित होते हैं
नवसृजन का सुखद भाव..... सुंदर
सुन्दर भाव लिए ... सृजन करती रचना ...
मन की इस मिट्टी में
बीज बोए पलने को
भावों के मेघ बीच
फूलों के खिलने को!
मन भी गीली मिट्टी की मानिंद होता है जिसमेँ भावोँ के बीज पल्लवित और पुषपित होते हैँ । शुभकामनाएँ
मन भी गीली मिट्टी की मानिंद होता है जिसमेँ भावोँ के बीज पल्लवित और पुषपित होते हैँ । शुभकामनाएँ
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