तुम्हारा पता
हर कोई
बता देता है
पर,
कोई एक
बन जाता है
मील का पत्थर
इन्ही निशानों का
लेकर सहारा
चल तो देती हूँ
एक कदम
तुम्हारी ओर
इसी उम्मीद में कि
तुम भी चल
दोगे प्रेम से
दो कदम
मेरी ओर … !!
6 टिप्पणियां:
एक कदम तुम चलो एक कदम मैं चालू ...
नई पोस्ट महिषासुर बध (भाग तीन)
बेहद उम्दा प्रस्तुति |
मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
बेहतरीन
हम तो जबसे उसी दिशा में देख रहे हैं
कभी तो दर्शन होंगे, सुरभि हमारी के !
आशाएं तो जुड़ी रहें , इन साँसों से
न जाने, कब याद हमारी आ जाए !
शुभकामनायें !
उम्मीद बनी रहे .... बहुत सुंदर
उम्मीद हो तो पांव खींच लेते हैं खुद को उस तरफ जहां से किरण नज़र आती है उम्मीद की ...
एक टिप्पणी भेजें