रविवार, 27 जुलाई 2014

टमाटर में वही ....




बैंगन में वही 
टमाटर में वही 
सृष्टि के कण-कण में वही 
कहते साधु संत महान 
सहन नहीं कर पाते
लेकिन 
आदमी में भगवान  … !

9 टिप्‍पणियां:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आज कुछ नहीं कहूँगा.. क्योंकि कविता की अंतिम पंक्ति ने नि:शब्द कर दिया है!! थोड़े में सब कुछ कह दिया है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

वही तो नहीं है…

Satish Saxena ने कहा…

आदमी , इंसान तो बन ले पहले ….
मंगलकामनाएं इस टमाटर को ! भाव पहले ही बढे हुए हैं !!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अंतिम लाइन ... गहरा सत्य, गहरा कटाक्ष ... बहुत कुछ कहता हुआ ...

Asha Joglekar ने कहा…

टमाटर में तो सबको भगवान ही दिखाई दे रहे हैं।
पर सचमुच आदमी कब आदमी में ही भगवान को देखना सीखेगा।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उम्दा और बेहतरीन... आप को स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ

Satish Saxena ने कहा…

पुनश्च:
.... नहीं !!
आदमी इंसानियत खो रहा है !

Suman ने कहा…

@ आदमी इंसानियत खो रहा है !
yah sahi hai

संजय भास्‍कर ने कहा…

गहरा कटाक्ष ... बहुत कुछ कहता हुआ