साँझ ढलते ही
मुरझाती है
सुबह होते ही
खिल जाती है
हरे-भरे परिधान में
छुई-मुई मेरे आँगन में
नाजुक-सा तन-बदन
सुमन-सी सुकुमारी
मृदु स्पर्श मात्र से
सिमट-सिमट कर
रह जाती
आते-जाते सबके
पुलक जगाती तन-मन में
छुई-मुई मेरे आँगन में
उसके निकट बैठू तो
आती है मुझको
उससे चंपा-सी गंध
पत्ते-पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहंदी के गीत में
छुई-मुई मेरे आँगन में !!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
16 टिप्पणियां:
छुईमुई सी भावना हल्के से छू गई है और मुस्कुराने लगी है ...
बधाई स्वीकारें सुमनजी :)
पत्ते-पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहंदी के गीत में
छुई-मुई मेरे आँगन में !!
sundar rachna bhavon ki achhi abhivyakti , badhai
हर पल बदलते छुईमुई के रंग...... बहुत सुंदर सुमनजी.....
छुईमुई आपके आंगन की बडी प्यारी, लजीली, कोमल हौले हौले मुस्कुराती सी लगी । बहुत सुंदर ।
बहुत सुन्दर. जीवन को अपने में समेटे कविता....इस छुई मुई को शकतो प्रदान हो ताकि वो ऐसे ही जीवन का संचार करने वाले गीतों की रचना में सहायक सिद्ध होती रहे.
प्रणाम
छुई-मुई पर कविता मैंने पहली बार पढ़ी.नया विषय लेने के लिए और सुन्दर कविता के लिए बधाई आपको.
concrete ke in janglonme chhuimui kaha panapti hai sir yeha to mere gaav ki hai......
mere blog par swagat hai....
Aap bahut achchaa likhti hain, padh kar bahut achcha laga. Dhanyavad.
मन कुछ उदास था सुमन जी और ये रचना दाल दी .....
छुई मूई पर शायद पहली बार किसी ने रचना लिखी हो ....
लाजवंती भी कहते हैं इसे ....
बचपन में खूब छेड़ते थे इसे .....
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप का ह्र्दय से बहुत बहुत
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
छुईमुई मेरे आँगन की ने बहुत कोमल कविता को जन्म दिया ... सुन्दर कविता ... आपकी यह कविता कल शुक्रवार को चर्चामंच पर होगी .. सादर
http://charchamanch.blogspot.com
मैंने भी लगाई है एक गमले में ...
बहुत अच्छा लगता है उसे सिकुड़ते हुए देखना और फिर एक एक पत्ती का फिर से खुल जाना ...
अच्छी कविता !
छुईमुई पर पहली बार कोई रचना पढ़ी ...बहुत सुन्दर भावों से सजी हुई ..
बहुत सुन्दर भावों से सजी हुई सुन्दर कविता के लिए बधाई आपको...
एक टिप्पणी भेजें