गुरुवार, 10 मार्च 2011

क्षितिज के पार ........

इन कविताओं का
सृजन केवल एक
बहाना ही तो है
सन्देश
तुम तक
पहुंचा ने का
अन्यथा
मै कह न पाती
तुम सुन न पाते
दूर
क्षितिज के पार
प्रिय
तुम्हारा गाँव !

10 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत किया बहाना ... तुमने सुना क्या ?
बहुत पुकारा तुझे इन शब्दों ने ... सुना क्या ?

Sunil Kumar ने कहा…

सुमन जी, आपने तो सृजन की एक नयी परिभाषा बता दी , सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

सुंदर रचना। बधाई सुमन जी॥

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बढ़िया सुमनजी..... गिनती के शब्द हैं.... और अभिव्यक्ति कितनी गहन.... अच्छा लगा पढ़कर ....

Kailash Sharma ने कहा…

कुछ शब्दों में इतनी गहन अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर

विशाल ने कहा…

अन्यथा
मै कह न पाती
तुम सुन न पाते
दूर
क्षितिज के पार
प्रिय
तुम्हारा गाँव

बहुत खूब लिखा है आपने.
सलाम .

Kunwar Kusumesh ने कहा…

गागर में सागर.

mridula pradhan ने कहा…

अन्यथा
मै कह न पाती
तुम सुन न पाते
दूर
क्षितिज के पार
प्रिय
तुम्हारा गाँव wah.ekdam dil se nikli ho jaise..

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ....बहुत ही खूबसूरत गहरे भाव लिये
बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Hemant Kumar Dubey ने कहा…

Man ko moh le aisa likhati hain aap.
Hemant Kumar Dubey