छुट जाने दो
सब परिधियाँ
शब्द, संवाद
विविध भावनाओं का
व्यापार !
प्रतिपल बढ़ता
रात का सन्नाटा
और सन्नाटे में,
अपने ही मन के
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
और सुनती रहूँ
चुपचाप रात के
सन्नाटे की
अपनी जुबांन !
सब परिधियाँ
शब्द, संवाद
विविध भावनाओं का
व्यापार !
प्रतिपल बढ़ता
रात का सन्नाटा
और सन्नाटे में,
अपने ही मन के
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
और सुनती रहूँ
चुपचाप रात के
सन्नाटे की
अपनी जुबांन !
9 टिप्पणियां:
sannate ki zubaan sunna jivan ko pana hai
सुंदर प्रयोग... सन्नाटे में गूंज का॥
rat ke sannate ki apni zuban .................
kya sunder likha hai
rachana
और सन्नाटे में,
अपने ही मन के
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
गहन अभिव्यक्ति सुमनजी......
अपने ही मन के
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
और सुनती रहूँ
चुपचाप रात के
सन्नाटे की
अपनी जुबांन !
सन्नाटे की भी अपनी जुबां होती है जो बहुत शोर करती है .. अच्छी प्रस्तुति
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
और सुनती रहूँ
चुपचाप रात के
सन्नाटे की
अपनी जुबांन !
साथ ही अंतर्मन की जुबान भी । सुंदर ।
छुट जाने दो
सब परिधियाँ...
कुछ पाने के लिए इन परिधियों को तोडना आवश्यक है .....
मन की गहराइयों से निकली पंक्तियाँ .....
ati sunder .
ye hee kshan hume apane paas le jate hai .
aabhar
रात के
सन्नाटे की
अपनी ज़ुबान
मन की गहराइयों से निकली पंक्तियों के लिए मन से आभार और बधाई है आपको आदरणीया सुमन जी !
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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