कुहरे में ठिठुरती भोर चिल्लाई
सरदी आयी सरदी आयी
बदला मौसम बदली चाल
सरदी ने किया बुरा हाल !
रजनी चाची देर तक सोई
सूरज चाचा देर से जागा
बहकी लहकी बोले पुरवाई
सरदी आयी सरदी आयी !
खिली कलियाँ पंछी चहके
मचल-मचल जंगल महके
थरथर-थरथर देह कांपे
बंद करो सब खिड़की दरवाजे !
दुबक के दुशाले में दादी बोली
कैसे गजब की सरदी आयी
सिमट के बिस्तर में पापा बोले
जल्दी लाओ गर्म चाय की प्याली !
ठंडी-ठंडी सर्द हवायें
मम्मी जगाये सुबह-सवेरे
बजी घंटी आठ बजे
स्कूल को देर हो न पाये !
12 टिप्पणियां:
सर्दी तो अब गुज़रने को है। अच्छी कविता॥
दुबक के दुशाले में दादी बोली
कैसे गजब की सरदी आयी
सिमट के बिस्तर में पापा बोले
जल्दी लाओ गर्म चाय की प्याली !
lekin main kaise baahar niklun , mere liye bhi sardi aai
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
मौसम का बदलाव मानो संकेत है जीवन के उतार-चढ़ाव और उनके बीच सामंजस्य बनाए रखने का।
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
सरदी का सही सही वर्णन । बहुत प्यारा सा ।
oh! jare ka dard fir se badh gaya hai. hamane to koolakata me garmee kee aahat sun kar chain ke banshee baja rahe the.
बहुत ही खुबसूरत....
रजनी चाची देर तक सोई
सूरज चाचा देर से जागा
बहकी लहकी बोले पुरवाई
सरदी आयी सरदी आयी !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
सरदी के बारे में बच्चों की सोच की सुन्दर अभिव्यक्ति!...धन्यवाद सुमन जी!
बहुत सुन्दर रचना
बहुत बढ़िया...
बचपन की हिंदी पाठ्यपुस्तक याद आ गयी :-)
एक टिप्पणी भेजें