कल वर्ष भर के
सारे सुप्त सुख
लौट आये थे
एक दिन में,
एक दिन में,
आल्हादित हुआ
था मन अपने इस
एक दिन के
भाग्य पर
समय और भाग्य ने
एक दिन का देवत्व
होने का गौरव
जो प्रदान किया था !
दुसरे दिन ...
सुबह पांच बजे
आलार्म का
कर्णकर्कश स्वर
मानो कह रहा था
अगर एक दिन का
देवता होने का भ्रम
दूर हुआ हो तो उठो
"उठो ...देव
कितने सारे काम
करने है ..
डेयरी से दूध लाना है
चाय बनानी है
पीने का पानी
नल से भरना है
सब्जी लानी है
गिनती बढती जा
रही थी .....!
11 टिप्पणियां:
देवत्व पुरे जीवन भर का प्राप्त होता है उसे जीने और चिरस्थाई बनाने का गुण आना चाहिए . देवत्व को सहेजना आसान नहीं
सुन्दर अभिव्यक्ति .
:) यही है ज़िन्दगी का सच
एक दिन के बाद फिर वही रोजमर्रा की भागदौड़ :)
वाह ... बहुत खूब
हृदयस्पर्शी रचना ...सच यही है ...
:):) देवत्व एक दिन का भी मिले तो क्या कम है ?
katu satya ...yahi to jivn hai ....suman jee ...
बहुत ही सुन्दर भाव लिए रचना |
आशा
सुन्दर भावपूर्ण रचना ।
यह देवत्व जीवन भर का बन जाये । पर देवों को भी काम कहां छूटा है ।
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