शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

एक दिन का देवता ....


कल वर्ष भर के 
सारे सुप्त सुख 
लौट आये थे
एक दिन में,
आल्हादित हुआ 
था मन अपने इस
एक दिन के 
भाग्य पर 
समय और भाग्य ने 
एक दिन का देवत्व 
होने का गौरव 
जो प्रदान किया था !
दुसरे दिन ...
सुबह पांच बजे 
आलार्म का 
कर्णकर्कश स्वर 
मानो कह रहा था 
अगर एक दिन का 
देवता होने का भ्रम 
दूर हुआ हो तो उठो 
"उठो ...देव 
कितने सारे काम 
करने है ..
डेयरी से दूध लाना है 
चाय बनानी है 
पीने का पानी 
नल से भरना है 
सब्जी लानी है 
गिनती बढती जा
रही थी  .....!

11 टिप्‍पणियां:

Ramakant Singh ने कहा…

देवत्व पुरे जीवन भर का प्राप्त होता है उसे जीने और चिरस्थाई बनाने का गुण आना चाहिए . देवत्व को सहेजना आसान नहीं

Kunwar Kusumesh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति .

vandana gupta ने कहा…

:) यही है ज़िन्दगी का सच

रश्मि प्रभा... ने कहा…

एक दिन के बाद फिर वही रोजमर्रा की भागदौड़ :)

सदा ने कहा…

वाह ... बहुत खूब

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

हृदयस्पर्शी रचना ...सच यही है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

:):) देवत्व एक दिन का भी मिले तो क्या कम है ?

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

katu satya ...yahi to jivn hai ....suman jee ...

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भाव लिए रचना |
आशा

surenderpal vaidya ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण रचना ।

Asha Joglekar ने कहा…

यह देवत्व जीवन भर का बन जाये । पर देवों को भी काम कहां छूटा है ।