ओ कवि मन ,
आखिर कब तक
यूँ ही शब्दों से
खेलते रहोगे ?
अविराम कब तक
भटकते रहोगे ?
बहुत हो चुका
प्रेम सपनों से
कोरी कल्पनाओं से
चलो शब्दों के पार
परा के पार की
दुनिया में , जहाँ
शब्द नहीं मौन
बोलता है, जहाँ
कवितायेँ नहीं ,
ऋचायें झरती है !
दुनिया की सारी
चिंताओं से दूर
सारी हदों के पार
केवल अनहद में
विश्राम ही विश्राम
है जहाँ पर … !!
17 टिप्पणियां:
कवि सुनने वाला नहीं दी....
उसकी साँसे तो शब्द से ही चलती हैं.....
बहुत प्यारी रचना.....
सादर
अनु
बहुत सुन्दर रचना.
नई पोस्ट : पुनर्जन्म की अवधारणा : कितनी सही
बहुत ही गहन भाव और बहुत ही बेहतरीन रचना ..
शायद अनहद ही अन्तिम पड़ाव है !गहन विचार
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
बहुत ख़ूब ...
सुन्दर आह्वान कवि से.
भावो का सुन्दर समायोजन......
खूबसूरत,रचना
सुंदर प्रस्तुति...
आज कल्पनाओं से हटकर चलें,जहाँ ऋतू हंसती है!
चले वहां जिस देश में केवल,वेद ऋचाएं झरती हैं !
शब्दों का मोह इतना ज्यादा होता है कवि को की भटकाव जीवन भर रहता है .. ये जाल टूट नहीं पाता ..
यही तो जीवन की मंजिल है।
काश, उसके पार पहुंच पाते. बहुत ही सारगर्भित.
रामराम.
अगर तुमने कभी , नदी को गाते नही
प्रलाप करते हुए देखा हैं
और वहाँ कुछ देर ठहर कर
उस पर गौर किया हैं
तो मैं चाहूंगी तुमसे कभी मिलूं!
अगर तुमने पहाडों के
टूट - टूट कर बिखरने का दृश्य देखा हैं
और उनके आंखों की नमी महसूस की हैं
तो मैं चाहूंगी तुम्हारे पास थोडी देर बैठूं !
अगर तुमने कभी पतझड़ की आवाज़ सुनी हैं
रूदन के दर्द को पहचाना हैं
तो मैं तुम्हे अपना हमदर्द मानते हुए
तुमसे कुछ कहना चाहूंगी! …… स्व. सरस्वती प्रसाद
कहते-सुनते हैं कुछ आज की प्रतिभाओं से =
http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/11/21.html
शब्दों से परे बोलती है प्रकृति, झरती हैं ऋचाएं।
बहुत दिनों बाद यहां आने के लिये क्षमा चाहती हूँ सुमन जी, पर आप तो समझती हैं कि छह माह घर बंद हो तो सम्हालना समय तो मांगता है।
सुन्दर प्रस्तुति...भावपूर्ण कविता....
☆★☆★☆
चलो शब्दों के पार
परा के पार की दुनिया में ,
जहाँ शब्द नहीं मौन बोलता है,
जहाँ कवितायेँ नहीं , ऋचायें झरती है !
वाह…!
आदरणीया सुमन जी
बहुत सुंदर कविता है !
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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