सुबह से शाम की
अंधी भाग दौड़
मनुष्य को
इतना दौड़ाती है
इतना दौड़ाती है कि ,
मनचाहा बहुत कुछ
छूट जाता है जिसमे,
और अंत में
सारी दुनिया को
दिखायी देता है
भीतरसे असफल
पर उपरसे एक
सफल व्यक्ति … !
***
आज के इस दौर में
नौकरी और हॉबी
एक पत्नी तो
एक प्रेयसी
एक को मनाये
तो दूजी
रूठ जाती
है … !
8 टिप्पणियां:
ज़िन्दगी की भाग-दौड़ और नौकरी तथा हॉबी के बीच चुनाव को लेकर जूझते हुए कई बार आपकी इस कविता को महसूस किया है!! मेरी सम्वेदनाओं को स्वर प्रदान किया है आपने!! आभार!
क्या उदाहरण दिया है :) ?
मगर सच है !!
बहुत बढ़िया...कितनी आसानी से बड़ी बात समझा गयी आपकी कविता..
सादर
अनु
भावो का सुन्दर समायोजन......
भावों का अद्भुत समायोजन जीवन की कड़ियाँ खोलती
दो नावों में पांव रखना आसां कहाँ होता है ...
भावपूर्ण ...
सही बात, हर खुशी की कीमत है ...
वाह नौकरी और हॉबी क्या सिमिली चुनी है मज़ा आ गया।
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