गुरुवार, 11 सितंबर 2008

सवेरे सवेरे

सवेरे सवेरे
मीठे सपनों मे
मै खोई हुई थी
इस कदर नींद कुछ
गहरा गई थी
कि झटके से टूट गई
ये किसने दी आवाज मुझको
सवेरे सवेरे ?
उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिए
हात में
किसकी अगवानी में
हवायें  मीठी तान सुनाये
पंछी गीत मधुर गाये
दूर-दूर तक राह में
कौन बिछा गया
मखमली चादर हरी
सवेरे- सवेरे ?
कहो किसके स्वागत में
पलक पावडे बिछाये
इस किनारे पेड़
उस किनारे पेड़
और बीच पथ पर
लाल पीली कलियाँ
ये किसने बिछाये है फूल
सवेरे-सवेरे   .... 

सोमवार, 30 जून 2008

सर्दी आई

हवा ठंडी
रात ठंडी
स्वप्न मीठे
नींद मीठी
भाए माँ की ,
गोद मीठी
वसुधा की मृदु शय्या पर,
निशि ने वोड़ ली
काली रजाई
सर्दी आई

रिमझिम

रिमझिम आई बरखा
नभ में,
कड़अड़ कड़ कड़
बिजली चमकी
काले -काले बादल छाये रे
रिमझिम -रिमझिम
आई बरखा
ठंडी चली पुरवाई रे
बीत गए अब
दिन गर्मी के
नही रहे गर्म
लू के झोंके
ताप मिटा धरती का
जनजीवन में खुश हाली रे
कबसे आंगन में
रिमझिम बरसा बरस रही
कानो में रस घोल रही
झरझर- झरझर जैसे
लय ताल बद्ध संगीत रे
धीरे -धीरे हौले -हौले
खोल पिसारा नाच
मुग्ध मनमयूर नाच
नाच छम छनना नाच रे?

मई का महिना

गर्मी के दिन
मई का महिना
आग उगलता सूरज
पिघलती सड़क
भागते दौड़ते लोग
पसिनेसे तरबतर
चारो और मोटर गाड़ियों का शोर
सुभसे शाम निरंतर?
मंजिलोपर मंजिल
गगन चुम्बी इमारते
छोटे छोटे घर
छोटासा परिवार
बंद सब खिड़किया
झांकती नही चांदनी
छत ना आंगन
कूलर पंखे की घर-घर्र
रातभर
नींद मे डालते खलल
मछर
घुटन भरी जिंदगी
मुश्किल है जीना
मई का महिना

सोमवार, 21 जनवरी 2008

वर्ष एक बित् गया

एक पल आया
एक पल गया
पल एक हँस्सा गया
पल एक रुला गया
जीवन पाटीपर कभी गम के
कभी कुशियोंके रंग भरकर
दिवस एक बित् गया
वर्ष एक बित् गया
समय कहाँ कब रुकता है
कालचक्र चलता रहता है
कभी आशा है कभी निराशा
सफलता में छुपी असफलता
सुख-दुःख में बंधा है जीवन
धुप-छाव का खेल तमाशा
दूर है मंजिल राही अकेला
रात है छोटी सपने जादा
जो साकार इन्हें है करना
कदम कहते है रूक जाना
समय कहता है चलते जाना
दूर मंजिल को है पाना
दिवस एक बित् गया
वर्ष एक बित् गया