छलक-छलक आते है ये आंसू
बिन बादल बरस जाते है ये आंसू!
इन बहते आंसुओं को मत रोको
इन्हें बहने दो!
इन आसूओं के खारेपन से
जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !
खूब खिलते उद्यान महकाते
इन खिलती ह्रदय कलियों को
मत तोड़ो
इन्हें खिलने दो !
इन खिलते फूलों की खुशबु से
जीवन की फुलवारी
सदा महकने दो !
केवल शब्द नहीं है ये
भाव है मन के
इन भावों को सीमा में मत बांधो
इन्हें मुक्त आकाश में उड़ने दो !
इन भावों के मनमंदिर में
शत-शत दीप जलने दो !
शनिवार, 28 अगस्त 2010
मंगलवार, 10 अगस्त 2010
गीत मेरा अधुरा
अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा,
आज मन बेकाबू होने लगा है!
पंछी बन नभ में उड़ने लगा है!
पवन कलियों को गीत सुनाने लगा है!
ओ झुमझुम कर नाचती बसंती बहारों,
मधुर कंठी कोयल कोई गीत गाओ!
नींद से मुझे अभी तुम न जगाना ,
अभी स्वप्न मेरा अधुरा-अधुरा !
जीवन को साधना भक्ति बना लूँ,
प्रभु प्रेम को मै पूजा बना लूँ !
भाव दीपों को आरती में सजा लूँ,
हे अश्रु सुमनों प्रिय पथ सजाओं !
बिखरे सुर ताल सितार पर संवारो ,
कभी द्वार आकर न तुम लौट जाना!
अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा !!
आज मन बेकाबू होने लगा है!
पंछी बन नभ में उड़ने लगा है!
पवन कलियों को गीत सुनाने लगा है!
ओ झुमझुम कर नाचती बसंती बहारों,
मधुर कंठी कोयल कोई गीत गाओ!
नींद से मुझे अभी तुम न जगाना ,
अभी स्वप्न मेरा अधुरा-अधुरा !
जीवन को साधना भक्ति बना लूँ,
प्रभु प्रेम को मै पूजा बना लूँ !
भाव दीपों को आरती में सजा लूँ,
हे अश्रु सुमनों प्रिय पथ सजाओं !
बिखरे सुर ताल सितार पर संवारो ,
कभी द्वार आकर न तुम लौट जाना!
अभी गीत मेरा अधुरा-अधुरा !!
बुधवार, 4 अगस्त 2010
किस चित्रकार ने रंग भरे है
सुबह की सिंदूरी लाली में,
सूरज की सुनहरी किरणों में,
ओस बिखरी हरियाली में,
किस चित्रकार की तुलिका ने,
रंग भरे है इनमे मोहक !
और मै अपने घर आंगन की,
रंगोली में रंग भरती रही जीवनभर !
हवावों की सायं -सायं में ,
पायल -सी खनकती पत्तियोंमे ,
बारिश की रिमझिम बरसातों में,
किस गायक के सुरों ने,
स्वर भरे इनमे अद्भुत !
और में अपने मन वीणा के तारों में ही,
उलझी रही जीवनभर !
पूनम की मदभरी रातों में,
चन्द्र वदना यामिनी को
सागर की लहरों पर,
किस कवी की कलम ने
कविता लिख भेजी मनोहर !
और मै अपनी आधी -अधूरी
कविताओं पर मुग्ध होती रही जीवनभर!!
सूरज की सुनहरी किरणों में,
ओस बिखरी हरियाली में,
किस चित्रकार की तुलिका ने,
रंग भरे है इनमे मोहक !
और मै अपने घर आंगन की,
रंगोली में रंग भरती रही जीवनभर !
हवावों की सायं -सायं में ,
पायल -सी खनकती पत्तियोंमे ,
बारिश की रिमझिम बरसातों में,
किस गायक के सुरों ने,
स्वर भरे इनमे अद्भुत !
और में अपने मन वीणा के तारों में ही,
उलझी रही जीवनभर !
पूनम की मदभरी रातों में,
चन्द्र वदना यामिनी को
सागर की लहरों पर,
किस कवी की कलम ने
कविता लिख भेजी मनोहर !
और मै अपनी आधी -अधूरी
कविताओं पर मुग्ध होती रही जीवनभर!!
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