शनिवार, 24 दिसंबर 2011

नववर्ष की पूर्व संध्या पर .........


नववर्ष की पूर्व संध्या पर 
दो हजार ग्यारह की 
कुछ इस प्रकार रही 
 प्रमुख खबरे !

जनलोकपाल का लेकर अभियान 
अनशन का महत्व समझाकर
देश विदेशों में छाये रहे 
अन्ना हजारे !

धरती पर कुनबा बढ़कर 
पार कर गया सात अरब 
चीन के बाद भारत का 
दूसरा नंबर !

१२१ करोड़ जनसंख्या वाले 
 देश में बहुत कुछ बेचा जा 
सकता है, मतलब उनका 
आर्थिक विकास !

जीवन भर सुख साधन जोड़ 
मिटी नहीं सत्ता की भूख 
किसी ने खाए जुते और 
किसी ने खाए थप्पड़ !

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

प्रेम क्या है ?


कभी किसी ने कहा....
प्रेम महज आत्मरति है 
या फिर भावनाओं का
आदान-प्रदान और
कुछ नहीं है प्रेम !
किस शब्द से लिखूं कि,
प्रेम क्या है ?
या निशब्द से कहूँ कि,
प्रेम क्या है ?
प्रेम कही ये तो नहीं ...
जिसके नाम मात्र से 
छाने लगती है खुमारी 
कानों में गूंजने
लगती है मंदीर क़ी
घंटियों क़ी आवाज !
सुनाई देने लगते है 
पवित्र अजान के स्वर ! 
तब हम किसी दिव्य
लोक में पहुँच जाते है 
प्रेम प्रार्थना बन जाता है 
तन चन्दन मन धूप 
बन जाता है !
कही हमारी ही 
नाभि से उठ रही 
कस्तूरी सुगंध तो 
नहीं है प्रेम ?

रविवार, 11 दिसंबर 2011

फिर भी ........


माँ ने बचपन में मुझे 
हाथ पकड़ कर चलना 
सिखाया बोलना सिखाया 
प्रेम करना सिखाया !

कविता ने मुझे फिर 
सजा संवार कर 
अलंकृत किया और  
शब्दों के जरिये आपसे 
दोस्ती करना सिखाया !

दोस्त थोड़े ही झूठ बोलते है ?
हर बार रचना को सुंदर कहते है 
थोडा भरोसा थोडा विश्वास 
थोडा लिखने का सलीका 
आ ही जाता है !

जैसे-जैसे ये विश्वास 
टूटने लगता है 
फिर से लिख देती हूँ 
एक कविता ताकि,आप फिर से 
कहो कविता अच्छी है !

मै जानती हूँ 
विश्वास अपना ही और 
भरोसा अपना ही काम आता है 
फिर भी .....

बुधवार, 30 नवंबर 2011

प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ ........


प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ 
जिस रूप में भी, सहज 
मै तुम्हे पहचान लुंगी 
हम दोनों में भेद कहाँ ?
तुम सत्य शिव सुंदर और मै
पार्वति शक्ति स्वरूपा !
तुम मुक्त पुरुष और मै 
प्रकृति प्रेम-जंजीर !
तुम इश्वर निराकार 
मै जग में व्याप्त मोह-माया !
तुम भवसागर हो दुस्तर 
मै कल-कल बहती सरिता !
तुम प्रेम मै शांति 
तुम ज्ञान मै भक्ति 
तुम योग मै सिद्धि 
तुम नर्तक और मै 
नुपूर ध्वनि !
तुम चित्रकार मै तुलिका 
तुम शब्द मै भावना 
तुम कवियों के कवि 
शिरोमणी और मै 
तुम्हारी मनभावन 
कविता !

सोमवार, 14 नवंबर 2011

आयी भोर .......

भोर सुबह में
पेड़-पौधे जागे,
पंछियों के मीठे 
गीत जागे !

खिली कलियाँ 
फूल महके,
कलि-कुसुमों पर 
भौरे इतराये !

लिये नये स्वप्न
नई आशा
आलस त्यागकर 
जागी उषा !

अब तो जागो मन 
श्वेत परिधान पहन कर 
स्वागत करने
बड़े सवेरे 
आयी भोर ......!!

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

तमसो मा ज्योतिर्गमय!


मिट्टी के दिये,
जैसे-तैसे 
बाहर का अंधकार 
तो मिटा देते है 
किन्तु,
बाहर की इस 
रोशनी से मेरे 
भीतर का अंधकार 
कहाँ मिट पाता है 
इसलिए मुझे 
हे प्रभु,.......
अंधकार से 
प्रकाश की ओर 
ले चलो !

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

सफ़र का अंत कब आया !

एक अदद
उधडी-सी जिंदगी
सीते-सीते
भले ही दिन का
अंत आया पर
मुश्किलों का
अंत कब आया !
उबड़-खाबड़
जीवन की इन
पथरीली राहों पर
कब तक है चलना
थके कदम कहते है
रुक जाना
समय कहता है
चलते रहना
भले ही सांसो का
अंत आया पर
सफ़र का अंत
कब आया !


रविवार, 18 सितंबर 2011

शब्द बेच रहीं हूँ आओं !

खट्टे-मीठे इन शब्दों में,
अर्थ मधुर भर लायी हूँ
परख-परख कर इनका
मूल्य लगाओ !
शब्द बेच रहीं हूँ आओ !

अन्तस्तल है सरिता-सागर
भरा भावना का इसमें जल
गीत,कविता है मुक्ता-दल
इसे लायी हूँ चुन-चुनकर
जाँच परख कर तोलो !

क्या पता कल आऊं न आऊं मै
लेना न  लेना तुमपर है निर्भर
रूपये पैसे की बात ही, छोड़ो
केवल स्नेह के बदले मोल लेलो
निज ह्रदय में सजाओ आओं !

भाव बेच रहीं हूँ   आओं !


रविवार, 4 सितंबर 2011

किस चित्रकार ने रंग भरे है !

सुबह की सिंदूरी लाली में,
सूरज की सुनहरी किरणों में,
ओस बिखरी हरियाली में,
किस चित्रकार की तुलिका ने,
रंग भरे है इनमे मोहक!
और मै अपने घर-आंगन की,
रंगोली में रंग भरती रही
जीवनभर !

हवाओं की सांय-सांय में,
पायल-सी खनकती पत्तियों में,
बारिश की रिमझिम बरसातों में,
किस गायक के सुरों ने,
स्वर भरे है इनमे अद्भुत !
और मै अपने मन वीणा के तारों में ही,
उलझी रही जीवनभर !

पूनम की मदभरी रातों में,
चन्द्रवदना यामिनी को
सागर की लहरों पर,
किस कवि की कलम ने
कविता लिख भेजी मनोहर !
और मै अपनी आधी-अधूरी
कविताओं पर मुग्ध होती रही
जीवनभर !

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

आधुनिक नारी तुमने .....

हे आधुनिक नारी
तुमने,
ये क्रांति का कैसा
बिगुल बजाया है
पब,पार्टियों की
शोभा बनकर
हाथ में शराब
और सिगरेट लिये
पुरुषों से समान
हक्क पाने का !
अब कैसे कोई
तेरे प्यार में,
कवि बनेगा !
कैसे लिखेगा
कालिदास तुमपर
 कविता !

बुधवार, 17 अगस्त 2011

मन के निविड़ एकांत में .......

छुट जाने दो
सब परिधियाँ
शब्द, संवाद
विविध भावनाओं का
व्यापार !
प्रतिपल बढ़ता
रात का सन्नाटा
और सन्नाटे में,
अपने ही मन के
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
और सुनती रहूँ
चुपचाप रात के 
सन्नाटे की
अपनी जुबांन !

रविवार, 7 अगस्त 2011

हिटलर की तरह पेश न आएँ......

आजादी प्रत्येक मनुष्य का स्वाभाविक गुण है! छोटेसे छोटा बच्चा भी अपने ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं स्वीकारता ! हर बच्चे को अपनी पसंद का खाने, खेलने, पढने, टी.वी. पर मनपसंद प्रोग्राम देखने, यहाँ तक कि अपने मन मुताबिक सोचने का अधिकार और आजादी होनी चाहिए !

माता-पिता घर में एक प्रकार का अनुशासन बना देते है, नियम, कायदे-कानून बना देते है ! जो वे कहते है,वही करो ! जहाँ वे चलाएं,वही चलो ! जो वे बताएं,वही देखो ! हर पल माता-पिता के इशारे पर चलना बच्चों को अच्छा नहीं लगता !उनको ऐसा लगता है जैसे हमारा अपना कोई वजूद ही नहीं है ! इस प्रकार के अनुशासन से बच्चों के अहंकार को चोट पहुँचती है ! और सारा अनुशासन, सारी व्यवस्था बोझ-सी लगने लगती है! आगे चलकर इसी व्यवस्था के विरोध में वे खड़े हो जाते है ! नतीजा यह होता है कि बच्चे चिडचिडे, जिद्दी बन जाते है और अपने माता-पिता कि आज्ञा का उल्लंघन करने में भी नहीं हिचकते ! उनको लगता है कि हमारी भावनाओं को दबाया जा रहा है ! हमें किसी भी बात कि आजादी नहीं है ! घर उन्हें कारागृह के समान लगने लगता है !

मुझे लगता है माता-पिता और बच्चों के बीच थोडीसी समझदारी हो ! माता-पिता अपने बच्चों कि भावनाओं क़ी कद्र करे ! उनके मनोभाओं को समझे ! डांटने क़ी बजाय प्यार से समझायें कि उनके लिये क्या अच्छा है और क्या बुरा है? क्योंकि बच्चे मानसिक रूप से अपरिपक्व होते है ! उनको अगर आप लॉजिकली समझायेंगे, तो वे जरुर समझ जायेंगे ! टी.वी. पर आजकल "कार्टून नेटवर्क" के जरिए बहुत सी ज्ञानवर्धक बाते सिखाई जाती है ! स्कूल से आते ही थोड़ी देर टी.वी. देखने में कोई बुराई नहीं है ! थोडा-बहुत मनोरंजन मन को हल्का और प्रसन्न बना देता है ! दिन भर क़ी सारी थकान दूर हो जाती है !

सबको आजादी से रहना पसंद है पर इसका यह मतलब नहीं है कि बच्चे बेलगाम हो जाएं और आजादी का दुरूपयोग करे ! थोडा तो अनुशासन जीवन में होना बहुत जरुरी है ! वरना जीवन में कामयाबी कैसे हासिल होगी भला ? हर माता-पिता क़ी यही इच्छा होती है क़ी अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनायें ! इसके लिये वे कितनी ही कठिनाइयों का सामना करते है ! बच्चों को भी चाहिए अपने माता-पिता क़ी भावनाओं को समझे ! उनके सपनों को साकार करे, ताकि समाज में उनके माता-पिता का नाम हर कोई आदर से ले सके !

अत: मेरा निवेदन यही है कि माता-पिता अपने बच्चों से हिटलर कि तरह नही, एक दोस्त कि तरह पेश आएं ! ताकि वे आपके सारे सपनों को साकार कर सके ! यही आजादी जीवन में व्यक्ति के, चरित्र को बनाने और बिगाड़ने का कारण बन सकती है !

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

मौसम आया है सुहाना .......... (बालकविता)

दूर गगन के टिम-टिम तारे
       मुझसे बोले ....
आओं परियों के देश चले !
       चंदा बोला ...
       चलो चले
बादलों में दौड़ लगायें !
       फ़ूल बोले ....
       बाग़ में आओं
संग हमारे खिलखिलाओ !
       तितली बोली ....
       क्यों न खेले
तुम-हम आँखमिचौली !
        कोयल बोली ....
        छोड़ो पढना
सुर-में-सुर मिलाकर गायें गाना
      मौसम आया है सुहाना !

मंगलवार, 28 जून 2011

कागज की नाव ........( बालकविता )


डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
सखी, सहेली आओ देखो
कागज की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिये चला
सुंदर सपनों का संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तूफानों से ना ये घबराये
लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
आओ सब मिल-जुलकर गायें
भोला बचपन लौट न आये
नाचो देकर ताल रे !
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे !

गुरुवार, 16 जून 2011

छा गये बादल ......

घिर-घिर कर
आ गए बादल
नील गगन में
काले-काले
छा गए बादल !

सर्द हुए हवा के झोंके
कडाकड़ नभ में
बिजली चमके
तप्त धरा की
प्यास बुझाकर
नदियों में जल भरने
आ गए बादल
छा गए बादल !

वन उपवन में अब
होगी हरियाली
शुक,पीकी मैनायें
नाच उठेंगी
खेत-खलिहानों में
होगी खुशहाली
गाँव-गाँव शहर
अमृत जल बरसाने
आ गए बादल
छा गये बादल !

हरष-हरष कर वर्षा
कुछ ऐसी बरसी
चातक मन तृप्त हुआ
बूंद स्वाति की
मोती बनी
मन के आंगन में
छमाछम छम-छम
बूंदों के नुपूर
खनका गये बादल
बरस गये बादल !

बुधवार, 8 जून 2011

कैसी हो याद ?

ये आज
सुबह-सुबह
किसकी
यादोंकी
ख़ुशबू
श्वास-श्वास में,
कस्तूरी घोल
गई !
शब्दों के
कलि-दल खुले
भाव कुछ
हुये है
 सुरमई !
यादों की वह
नर्म धूप
सुनहरी
तन-मन छू
आँगन में,
पसर गई !

शुक्रवार, 3 जून 2011

हर फूल दुसरे से अलग है ! (बालकविता )

क्यों देते हो उपदेश
ऐसे बनो वैसे बनो
नक़ल करने पर,
देते हो सजा !
फिर क्यों कहते हो
बनो उसके जैसा !
पूछो माली से ....
उसके बाग़ के,
फूल न्यारे खुशबू न्यारी
क्या जूही क्या मोगरा
फिर भी उसको कितना प्यारा !
हम भी तुम्हारे बाग़ के फूल है !
हर फूल दुसरे से अलग है !
देना स्नेह का खाद-पानी, फिर
हम अपना फूल खिलायेंगे !
सारी दुनिया में हम अपनी
ख़ुशबू सारी बिखरायेंगे !

मंगलवार, 17 मई 2011

छंद रचने के क्षण .....

रात के क्षण
सुबह से शाम
भागते दौड़ते
थक गया तन
जग क़ी राहें !
सुबह से शाम
कहते सुनते
उब गया मन
जग से बाते !
छाया तम है
गहरा !
निर्जन रात
एकांत, चारोओर
रजनी का पहरा !
उद्वेलित श्वास,
मन उदास
आँखे नम है !
क्यों उमड़ने लगी
आज फिरसे
भग्न अंतर क़ी
निराशा
छंद रचने के क्षण !

शनिवार, 14 मई 2011

मई का महिना .......


गरमी के दिन 
मई का महिना 
आग उगलता सूरज 
पिघलती सड़क 
भागते दौड़ते लोग 
पसिनेसे तरबतर,
चारों ओर मोटर 
गाड़ियों का शोर 
सुबह से शाम 
निरंतर !
मंजीलों पर मंजील
गगनचुम्बी  इमारते 
छोटे-छोटे घर 
छोटे-छोटे परिवार !
बंद सब खिड़कियाँ 
झांकती नहीं चांदनी 
छत ना आँगन !
कूलर पंखे की घर्र-घर्र 
रातभर,
नींद में डालते खलल 
मच्छर,
घुटनभरी जिन्दगी 
मुश्किल है जीना 
मई का महिना !

गुरुवार, 5 मई 2011

श्रद्धांजलि!!

कल
एक प्यारा मित्र
महाप्रयाण पर
चला गया!
और दिल में
छोड़ गया
कभी न भरने
वाली रिक्तता !
अंतिम विदाई स्वरुप
फूल, पुष्प मालाएं
अर्पित की सबने
मौन दिल रोया मेरा
मैंने अपने अश्रु

छुपाये !
शमशान में.....
धू-धूकर जलती
चिता ने कहा जैसे
नज़र भर कर देखो
और समझो वक्त का
इशारा क्या कहता है
जो कल आया था
आज जा रहा है
व्यर्थ गुरूर न कर
अपनी उपलब्धियों पर,
अब भी वक्त है
संभलने को !

मंगलवार, 3 मई 2011

जब तुमसे प्रेम हुआ है .......


तुमको अपना हाल सुनाने 
लिख रही हूँ पाती 
 प्रिय प्राण मेरे 
यकीन मानो 
अपना ऐसा हाल हुआ है 
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
जग का अपना दस्तूर पुराना 
चरित्रहिन् कहकर देता ताना 
बिठाया चाहत पर 
पहरे पर पहरा 
नवल है प्रीत प्रणय की 
कैसे छुपाऊं
ह्रदय खोलकर अपना 
कहो किसको बताऊँ 
अपना भी जैसे 
लगता पराया है 
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !
कौन समझाये इन नयनों को 
बात तुम्हारी करते है 
पलकों पर निशि दिन 
स्वप्न तुम्हारे सजाते है 
जानती हूँ स्वप्नातीत 
है रूप तुम्हारा 
मन,प्राण मेरा 
उस रूप पर मरता है 
जब से मुझको प्रेम हुआ है !
तुम्हारी याद में,
तुम तक पहुँचाने को 
नित नया गीत लिखती हूँ 
भावों की पाटी पर प्रियतम 
चित्र तुम्हारा रंगती हूँ 
किन्तु छंद न सधता 
अक्षर- अक्षर बिखरा 
थकी तुलिका बनी 
आड़ी तिरछी रेखाएँ
अक्स तुम्हारा नहीं ढला है 
जब से मुझको प्रेम हुआ है !

 

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

अभिलाषा


सुमन 
सुबह-सुबह 
काँटों में खिला 
साँझ मुरझा
गया !
जाते - जाते 
जीवन कहानी 
दोहरा गया !
हर बीज में 
छुपी हुई है 
फूल होने की 
अभिलाषा !
हर फूल में 
बीज होने की,
देखना कल 
फिर- फिर 
खिलेगा !
चाहे किसीका 
मित बिछुड़े 
चाहे किसीका 
प्यार लूटे
नए-नए अरमान लिए  
मन सपना 
फिर - फिर  
बूनेगा !

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

मेरा घर ......... (बालकविता)



आइये कभी,
ये है हमारा छोटा, प्यारा घर 
"स्वीट होम " लिखा है दरवाजे 
पर !
इधर फाइलों में उलझे है पापा 
कोर्ट - कचहरी का उनका पेशा,
बिज़ी रहते है हमेशा !
उधर, किचन में हलवा बना 
रही है मम्मी 
प्यार में उसके नहीं है कोई 
कमी !
उस स्टडी रूम में भैय्या है पढता 
केरियर की उसको खाती 
चिंता !
कभी - कभार ही मुझसे है मिल 
पाता !
दूर कोने में मै, अकेली उदास 
तभी कविता मेरे आती है पास 
मन की सारी बात वह जान 
जाती है 
चुपके - से कान में, मेरे कुछ 
कह जाती है !

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

नेह निमंत्रण ...........


सच में मैंने,
कभी न चाहा था!
तुमको अपने 
ह्रदय का हाल 
सुनाऊं !
मेरे सुख-दुःख में,
तुमको अपना 
साझीदार 
बनाऊं !
उन भोले-भाले
नयनोंमे, 
दर्द का सावन 
भर दूँ !
वह तो तुम्हारे 
नेह निमंत्रण ने,
अनायास मेरे 
दिल का दर्द 
पिघल कर 
शब्दों में,
बह आया है !

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

ढाई अक्षर प्रेम के .....


प्रेमग्रन्थ 
जितने भी लिख डालो 
प्रेमग्रंथ !
प्रेम का स्वाद कुछ 
समझ न आता 
दिल 
प्यासा का प्यासा !

   (२)

ऐ मुहब्बत 
दिल में ही, रहो 
कैद !
अच्छा नहीं लगता 
यहाँ-वहां झांकना 
तुम्हारा !

 (३)

बुद्धिवादी युग में,
निरंतर विचार,शब्द,ध्वनि 
के आघात से,
सिर्फ शब्दकोष में,
रह गई है 
शांति !

शनिवार, 19 मार्च 2011

चंदामामा की बारात जब धरती के करीब आ गई है तो देखिये कैसा है नजारा .........

चंदा मामा की शादी है,
उजली पोशाको में,
तारे सजे बाराती है!
ढोल- नगाड़े- बाजे बजते है,
झुम-झुमकर तालपर बाराती
सब नाचते है !
आतिश अनारों के साथ,
जब फुलझड़ियाँ छूटती है!
झिलमिल रोशनी से
धरती आकाश नहाते है!
सजधज कर युवतियाँ जब,
मटक-मटक कर चलती है,
अनब्याहे यूवाओं के दिल,
धड़क-धड़क जाते है!
पूनम की रात है,
मेहमानोंका स्वागत है,
दुल्हन के घरवाले
दुल्हे वालों को
चांदी की सुराही से
चांदी के प्यालोंमे भर-भर कर
शरबत पिलाते है!
बादल कहार गगन की डोली,
सितारों जड़े घूँघट में
दुल्हन शरमायी!
मंगल धुन बजी शहनाई
चंदा मामा की शादी की
शुभघड़ी है आयी !

सोमवार, 14 मार्च 2011

धरती ने जरा सी करवट बदली है !

विनाशकारी भूकंप ने
चारोओर मचाई तबाही
पल भर में कितनेही
घर-परिवार धरती में
समां गए साथ में लाया
सुनामी भयाक्रांत क्रंदन
देखते ही देखते पानी में,
समाने लगे इन्सान ही
इन्सान !
अपने दरबार में
हजारों की संख्या में
बढती भीड़ को देखकर
अट्टहास कर यमराज ने
काल से पूछा
किसी को छोड़ा भी या
सभी को ले आये हो ?
बदले में काल ने कहा
धरती की अपेक्षा
मेरा तो पराक्रम बहुत
छोटा है उसी की
परिणिति ने ही,आपका
दरबार भर गया है
कहकर काल ने मुस्कुराते
हुए धरती की ओर देखा !
मैंने तो संतुलन बनाये
रखने के लिए जरा सी
करवट क्या बदली है
बढती जा रही भीड़ की
ओर देखते हुए
धरती ने जवाब दिया !

गुरुवार, 10 मार्च 2011

क्षितिज के पार ........

इन कविताओं का
सृजन केवल एक
बहाना ही तो है
सन्देश
तुम तक
पहुंचा ने का
अन्यथा
मै कह न पाती
तुम सुन न पाते
दूर
क्षितिज के पार
प्रिय
तुम्हारा गाँव !

मंगलवार, 1 मार्च 2011

अमृत का द्वार ....

धीरे-धीरे
धरती पर उतरती
सांझ
सूरज समेट रहा
सुनहरी
किरणों का
जाल
पश्चिम दिशा में
अस्त होते
सूरज को देखकर
अचानक हमारा
अस्त होने का
ख्याल
ध्यान का जन्म
समाधि  का स्वाद
समाधान
समय के पार
है अमृत का
 द्वार!

(केवल कविता नहीं, खुद का, खुद पर किया हुआ प्रयोग! )

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

छुई-मुई मेरे आँगन में ..........

साँझ ढलते ही
मुरझाती है
सुबह होते ही
खिल जाती है
हरे-भरे परिधान में
छुई-मुई मेरे आँगन में
नाजुक-सा तन-बदन
सुमन-सी सुकुमारी
मृदु स्पर्श मात्र से
सिमट-सिमट कर
रह जाती
आते-जाते सबके
पुलक जगाती तन-मन में
छुई-मुई मेरे आँगन में
उसके निकट बैठू तो
आती है मुझको
उससे चंपा-सी गंध
पत्ते-पत्ते पर
लिख लाती है
नित नवे छंद
गुलाब भी झूमता है
मेहंदी के गीत में
छुई-मुई मेरे आँगन में !!

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

जीवन को महकाऊं कैसे

तू बता दे फूल मुझे ..........
मै तुझ सी खिल पाऊं कैसे?
तेरे जीवन पथ पर,
बीछे है कांटे फिर भी
उर में मुस्कान समेटे
पल-पल हवा के झोंके से,
खुशबू जग में ,
बिखराता है तू
तुझ जैसी खुशबु बिखराकर
जीवन को महकाऊ कैसे
तुझ सी खिल पाऊ कैसे?
सुबह को खिलता
साँझ मुरझाता
मंदिर मज़ार पर
बलिदान चढता
कितना सफल है
जीवन तेरा
मुझको खलती मेरी
नश्वरता !
तुझ जैसा बलिदान चढ़ाकर
जीवन को सफल
बनाऊ कैसे ? तुझ सी
खिल पाऊ कैसे?

रविवार, 23 जनवरी 2011

सवेरे -सवेरे

सवेरे-सवेरे
मीठे सपनों में
मै खोई हुयी थी
इस कदर नींद कुछ
गहरा गयी थी
की झटकेसे टूट गयी
ये किसने दी
आवाज मुझ को
सवेरे-सवेरे !
उषा कबसे खड़ी
स्वर्ण कलश लिए
हाथ में
किसकी अगवानी में
हवायें मीठी तान सुनाये
पंछी गीत मधुर गायें
दूर-दूर तक राह में
कौन बिछा गया
मखमली चादर हरी
सवेरे-सवरे !
कहो किसके स्वागत में
पलक -पावडे बिछाये
इस किनारे पेड़
उस किनारे पेड़
और बिच पथ पर
लाल पीली कलियाँ
किसने बिछायें है
फूल
सवेरे-सवेरे !

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

कैक्टस

मन मरू में
कभी
बोये न होंगे
बीज
प्रेम के
तभी तो
आज
उग आये है
कैक्टस !


(२)

एक दिन
बूंद
सागरसे
बिछड़ कर
खूब रोई
पछताई
फिर से
गिरी
बूंद
सागर में
सागर हो गई!



(३)
आधुनिक सभ्यता
जैसे की
गुलदान में
सजे
रंगबिरंगी
कागज के
फूल
ना खुशबु
न महक !