कंपकपाती
सर्द हवा
शीतल सब
गात है
धरती के
आगोश में
उंघ रही
रात है !
कुछ-कुछ
सोया-सा
तन
कुछ जागा-सा
मन है
निंदियारी
पलकों में
सपनों के
रूप है !
जब भोर
आंख खुली तो,
प्राची में
फैल गए थे
सिंदूरी रंग
धीरे से ...
आंगन में
सरक आयी थी
जाड़े की नर्म
धूप है ....!