शनिवार, 19 मार्च 2011

चंदामामा की बारात जब धरती के करीब आ गई है तो देखिये कैसा है नजारा .........

चंदा मामा की शादी है,
उजली पोशाको में,
तारे सजे बाराती है!
ढोल- नगाड़े- बाजे बजते है,
झुम-झुमकर तालपर बाराती
सब नाचते है !
आतिश अनारों के साथ,
जब फुलझड़ियाँ छूटती है!
झिलमिल रोशनी से
धरती आकाश नहाते है!
सजधज कर युवतियाँ जब,
मटक-मटक कर चलती है,
अनब्याहे यूवाओं के दिल,
धड़क-धड़क जाते है!
पूनम की रात है,
मेहमानोंका स्वागत है,
दुल्हन के घरवाले
दुल्हे वालों को
चांदी की सुराही से
चांदी के प्यालोंमे भर-भर कर
शरबत पिलाते है!
बादल कहार गगन की डोली,
सितारों जड़े घूँघट में
दुल्हन शरमायी!
मंगल धुन बजी शहनाई
चंदा मामा की शादी की
शुभघड़ी है आयी !

सोमवार, 14 मार्च 2011

धरती ने जरा सी करवट बदली है !

विनाशकारी भूकंप ने
चारोओर मचाई तबाही
पल भर में कितनेही
घर-परिवार धरती में
समां गए साथ में लाया
सुनामी भयाक्रांत क्रंदन
देखते ही देखते पानी में,
समाने लगे इन्सान ही
इन्सान !
अपने दरबार में
हजारों की संख्या में
बढती भीड़ को देखकर
अट्टहास कर यमराज ने
काल से पूछा
किसी को छोड़ा भी या
सभी को ले आये हो ?
बदले में काल ने कहा
धरती की अपेक्षा
मेरा तो पराक्रम बहुत
छोटा है उसी की
परिणिति ने ही,आपका
दरबार भर गया है
कहकर काल ने मुस्कुराते
हुए धरती की ओर देखा !
मैंने तो संतुलन बनाये
रखने के लिए जरा सी
करवट क्या बदली है
बढती जा रही भीड़ की
ओर देखते हुए
धरती ने जवाब दिया !

गुरुवार, 10 मार्च 2011

क्षितिज के पार ........

इन कविताओं का
सृजन केवल एक
बहाना ही तो है
सन्देश
तुम तक
पहुंचा ने का
अन्यथा
मै कह न पाती
तुम सुन न पाते
दूर
क्षितिज के पार
प्रिय
तुम्हारा गाँव !

मंगलवार, 1 मार्च 2011

अमृत का द्वार ....

धीरे-धीरे
धरती पर उतरती
सांझ
सूरज समेट रहा
सुनहरी
किरणों का
जाल
पश्चिम दिशा में
अस्त होते
सूरज को देखकर
अचानक हमारा
अस्त होने का
ख्याल
ध्यान का जन्म
समाधि  का स्वाद
समाधान
समय के पार
है अमृत का
 द्वार!

(केवल कविता नहीं, खुद का, खुद पर किया हुआ प्रयोग! )