अक्सर मै
सोचती हूँ
फिर भी
मन है कि
समझ न पाता
साँझ-सवेरे
नील गगन में,
अनगिनत
झिलमिल दीप
कौन जलाता
कौन बुझाता !
भोर से पहले
पंछी जागते,
फूल,पत्तों पर
कौन धवल
मोती बिखराता !
सवेरे-सवेरे
फूल खिल जाते,
हवाओं में कैसे
सौरभ भर जाता !
पल भर में
भौरों को कौन
सन्देश पहुंचाता !
कोयल के सुरीले
कंठ से गाकर
कौन नींद से
मुझे जगाता .....?