शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

कौन नींद से मुझे जगाता ...


अक्सर मै 
सोचती हूँ 
फिर भी 
मन है कि 
समझ न पाता 
साँझ-सवेरे 
नील गगन में, 
अनगिनत 
झिलमिल दीप 
कौन जलाता 
कौन बुझाता !
भोर से पहले 
पंछी जागते,
फूल,पत्तों पर 
कौन धवल 
मोती बिखराता !
सवेरे-सवेरे 
फूल खिल जाते, 
हवाओं में कैसे 
सौरभ भर जाता !
पल भर में 
भौरों को कौन 
सन्देश पहुंचाता !
कोयल के सुरीले 
कंठ से गाकर
कौन नींद से 
मुझे जगाता .....?

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

ढाई अक्षर प्रेम के ....


जितने चाहो 
लिख डालो 
प्रेम ग्रंथ 
किन्तु, 
ढाई अक्षर 
प्रेम के 
समझ न आते 
अक्सर 
कहते सुनते 
हर बार 
मन के भाव 
अनकहे ही 
रह जाते ....!

    ***
प्रेम क्या है ?
सदियों से अनेकों ने 
अनेकों बार अनेक 
रीतियों से,अभिव्यक्तियों से 
कहना चाहा 
प्रेम की परिभाषा को 
किसी ने समझा भी 
या नहीं पता नहीं 
किस भांति ?
जब भी कहना चाहा 
तब शब्दों में कहाँ 
व्यक्त हो पाया वो 
जो शेष है अभी ....!