मौज,मस्ती,रंग,तरंग और हुडदंग लिये होली हर साल की तरह हमारे द्वार पर दस्तक दे रही है ! ठंडी-ठंडी हवावों की सिहरन सूरज की तेज होती किरणों से बौखलाकर बर्फीले पहाड़ों के आँचल में छुपने का प्रयास कर रही है ! बाग़,बगीचों में कोयल की मीठी कुहू-कुहू सुनाई देने लगी है ! आम्र वृक्षों पर बौराई मंजरियाँ अनोखी सुगंध हवावों में भर रही है ! दूर-दूर तक सरसों की, पके हुये गेहूं की लहलहाती खेतियाँ मानों किसानों को कह रही है ...हमें काटकर बिन कर धन, धान्य से अपनी भंडारे भर लो ! बदलते मौसम के साथ बदलते रंगों के साथ चारों ओर नव जीवन का नव विकास दिखाई दे रहा है ! जाड़े की विदाई और ग्रीष्म का आगमन, नर्म-गर्म मौसम में रंगों का यह त्यौहार, बच्चे,बड़े सबके मन को भाने लगा है ! बच्चों की टोलियाँ हाथों में रंगों से भरी पिचकारियाँ लिये सड़कों पर निकल आई है ! किसी के हाथ में रंग तो किसी के हाथ में अबीर-गुलाल, कोई शरारती प्रियतम अपनी प्रेयसी को रंगों से भिगोने अपने पीठ पीछे हाथ में रंग छिपाए मुस्कुराने लगा है ! तभी तो गोकुल में अपने बाल-सखाओं के साथ कृष्ण निकल पड़े है रंग बरसाने .........राधा और उसकी सखियों के साथ रंग खेलने .........!!
रंग बसंती बहार आयी,
खुशियों की फुहार लायी !
होली के रंगों में !!
गोपियों के संग
गोकुल में कान्हा खेले रंग
सखी कैसे जाओगी घर !!
झंन -झन झाँजर बाजे
अबीर गुलाल के थाल सजे
रंगों का त्यौहार आया
खुशियाँ अपार लाया !!
बाँसुरी की धुन में,
गोपालों के संग,
गोकुल में कान्हा खेले रंग
सखी कैसे जाओगी घर !!
भर-भर पिचकारी से रंग छलका
हास-परिहास का सौरभ बिखरा
रंग उड़े, गुलाल उड़े,
मोहिनी सूरत चित्तचोर,
हाथ रोक रंग डाले,
भीगी चोली, भीगी चुनरी,
राधा रानी कैसे जाओगी घर
गोकुल में कान्हा खेले रंग !!