हमने जीवन को
कब समझा कब जाना
यूह्नी जीवन को वेर्थ गवांया
किंतु जीते -जीते
एक दिन पता चला
जिसको हमने जीवन समझा
वह जीवन नही
मृत्यु के द्वार पर
खड़ी हुई मनुष्य की
लम्बी कतारे है
कोई अब गया कोई
कल कोई परसों जाएगा
देर सवेर की बात है
खोजने पर भी उनके
नही मिलेंगे निशान
जैसे पानी पर खींची
गई हो लकीरे
बन भी नही पाती
की मिट जाती है
ऐसे ही पल में सब कुछ
मिटा देती है मृत्यु
एक कविता को छोड़कर!
रविवार, 13 दिसंबर 2009
सोमवार, 7 दिसंबर 2009
पलछिन
रुतु ने करवट बदली
मौसम हुवा रंगीला
सरसर -सरसर बहती
ठंडी चले पुरवा
कंपकपाती सर्द हवा
शीतल सब गात
धरती के आगोश में
ऊँघ रही है रात
उलझी-उलझी अलके
अलसाये नयन
उस पर याद
तुम्हारी आयी
भटक गया पलभर
न जाने कहाँ ये
स्वप्न पंखी मन
पलकों पर ठहर गया
कोई अंजाना स्वप्न
मानो ठिटक पल में छीन गया !
मौसम हुवा रंगीला
सरसर -सरसर बहती
ठंडी चले पुरवा
कंपकपाती सर्द हवा
शीतल सब गात
धरती के आगोश में
ऊँघ रही है रात
उलझी-उलझी अलके
अलसाये नयन
उस पर याद
तुम्हारी आयी
भटक गया पलभर
न जाने कहाँ ये
स्वप्न पंखी मन
पलकों पर ठहर गया
कोई अंजाना स्वप्न
मानो ठिटक पल में छीन गया !
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