मंगलवार, 28 मई 2013

छंद सधते नही है आज ...

आज,
अक्षर-अक्षर 
बिखर रहे है 
छंद सधते नहीं 
रूठ गये है 
सहज सरल 
भाव मन के ..,

कैसे हो स्वर 
साधन ?
कुछ अधिक 
ढीले ढाले है 
कुछ अधिक 
कसे हुए है 
मन वीणा के 
तार आज ...!

गुरुवार, 9 मई 2013

फूलों के बीज ....


मानसून आते ही 
ठंडी-ठंडी हवायें 
सरसराने लगती है 
हृदयाकाश में छाये 
भावों के मेघ 
मन की धरती पर 
बरसने को उतावले 
हो जाते है ...
बारिश की इन 
भाव भरी रिमझिम 
फुहारों से जब 
मन की मिट्टी 
गीली होने लगती है 
तब बो देती हूँ 
इस गीली मिट्टी में 
फूलों के
मन पसंद बीज 
और जब यह बीज 
टूटकर,गलकर
अंकुरित हो 
पौधे हवावों की 
सरसराती ताल पर 
फूलों सहित 
झूम झूम कर नाचने, 
गीत गाने लगते है 
तब फूलों की 
इस सुगंध से 
सारा जीवन महकने 
लगता है  जैसे .....!

( फूलों के बीजों का अभाव है 
  नहीं तो मिट्टी में भी फूल 
  छिपे होते है ..)