लिख रही हूँ पाती
प्रिय प्राण मेरे
यकीन मानो
अपना ऐसा हाल हुआ है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
जग का अपना दस्तूर पुराना
चरित्र हिन् कहकर देता ताना
बिठाया चाहत पर
पहरे पर पहरा
नवल है प्रीत प्रणय की
कैसे छुपाऊ
ह्रदय खोल कर अपना
कहो किसको बताऊ
अपने भी जैसे
लगते पराये है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
कौन समझाए इन नैनो को
बात तुम्हारी करते है
पलकों पर निशि दिन
स्वप्न तुम्हारे सजाते है
जानती हु स्वप्नातीत
है रूप तुम्हारा
मन प्राण मेरा प्रिय
उस रूप पर मरता है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है
तुम्हारी याद में
तुम तक पहुँचाने को
नित गीत नया लिखती हु
भावों की पाटी पर प्रियतम
चित्र तुम्हारा रंगती हु
किंतु छंद न सधता
अक्षर अक्षर बिखरा
थकी तुलिका
बनी आडी तिरछी रेखाएं
अक्स तुम्हारा नही ढला है
जबसे मुझको प्रेम हुआ है !