ना कुछ सीखना
ना सम्मर केम्प में जाना
मुझे तो छुट्टियों में
नानी के गावं है जाना !
जहां कल-कल नदी एक बहती
मधुर नाद सुनाती रहती
गीली रेत पर नंगे पैर चलना
ढेर सारी सीपियाँ बटोरना
शीतल स्पर्श वह पानी का
पैरों को गुदगुदाना मछलियों का
आटे की गोलियां बनाबाना कर
उनकों है खिलाना
मुझे तो नानी के गावं है जाना !
हरी भरी जहाँ वनराई
और वनराई में गूंजता है जब चरवाहे के
बंसी का स्वर
नाच उठता मन का मोर
आमों की आमराई ओर
ममता की छावं
भोले भाले लोग
प्यारा प्यारा गावं
डफली की ताल पर
लोक गीत है सुनना
मुझे तो नानी के गावं है जाना !
मंगलवार, 22 जून 2010
कागज़ की नाव (बालकविता )
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
सखी सहेली आवो देखो
कागज़ की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिए चली
सुंदर सपनोंका संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तुफानोंसे ना ये घबराएँ
लहरों पर इतराती जाए
बिना मोल की विहार कराये
देखों कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
भोला बचपन लौट न आये
आओ सब मिलजुलकर गाये
नाचो देकर ताल रे
डगमग डोले- डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
कागज ये नाव रे !
पानी ऊपर नाव रे
सखी सहेली आवो देखो
कागज़ की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिए चली
सुंदर सपनोंका संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तुफानोंसे ना ये घबराएँ
लहरों पर इतराती जाए
बिना मोल की विहार कराये
देखों कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
भोला बचपन लौट न आये
आओ सब मिलजुलकर गाये
नाचो देकर ताल रे
डगमग डोले- डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
कागज ये नाव रे !
सोमवार, 14 जून 2010
मेरी माँ
सबको अपनी -अपनी माँ प्यारी होती है
मुझको अपनी माँ सबसे प्यारी लगती है
सरल सुंदर मन की मधु मिश्री -सी मीठी,
माँ प्रेम और ममता की सरिता लगती है!
मेरी हर उलझन को चुटकी में सुलझाती,
घर को सजाकर कैसे सुंदर स्वर्ग बनाती,
माँ कभी पहेली तो कभी सहेली लगती है !
मेरी ख़ुशी में वह खुशीसे खिल जाती,
दुःख में मेरे फूल -सी मुरझाती,
माँ आँगन की फुलवारी लगती है !
कमजोर होता है जब मन लडखडाते है कदम,
अपने विश्वास भरे हाथों से थाम,
माँ कोई अनजानी प्रेरणा लगती है !
सुघड़ हाथो से तराश -तराश कर शिल्प बनाती ,
माँ है विश्वास,माँ है प्रेरणा ,माँ सर्वश्रेष्ट
भगवान की अनुपम भेट लगती है !
मुझको अपनी माँ सबसे प्यारी लगती है
सरल सुंदर मन की मधु मिश्री -सी मीठी,
माँ प्रेम और ममता की सरिता लगती है!
मेरी हर उलझन को चुटकी में सुलझाती,
घर को सजाकर कैसे सुंदर स्वर्ग बनाती,
माँ कभी पहेली तो कभी सहेली लगती है !
मेरी ख़ुशी में वह खुशीसे खिल जाती,
दुःख में मेरे फूल -सी मुरझाती,
माँ आँगन की फुलवारी लगती है !
कमजोर होता है जब मन लडखडाते है कदम,
अपने विश्वास भरे हाथों से थाम,
माँ कोई अनजानी प्रेरणा लगती है !
सुघड़ हाथो से तराश -तराश कर शिल्प बनाती ,
माँ है विश्वास,माँ है प्रेरणा ,माँ सर्वश्रेष्ट
भगवान की अनुपम भेट लगती है !
मंगलवार, 8 जून 2010
चंदामामा की शादी है
चंदामामा की शादी है
उजली पोशाकों में,
तारे सजे बाराती है
ढोल नगाड़े बाजे बजते है
झुमझुम कर ताल पर बाराती
सब नाचते है
आतिश अनारों के साथ
जब फुलझड़ियाँ छुटती है
झिलमिल रौशनिसे
धरती आकाश नहाते है
सजधज कर युवतियां जब
मटक-मटक कर चलती है
अनब्याहे यूवावों के दिल
धड़क -धड़क जाते है
पूनम की रात है मेहमानोंका
स्वागत है!
दुल्हन के घरवाले
दुल्हे वलोंकों
चांदी की सुराई से
चांदी के प्यालों में भरभर कर
शरबत पिलाते है
बादल कहार गगन की डोली
सितारों जड़े घूँघट में
दुल्हन शरमाई
मंगल धुन बजी शहनाई
चंदामामा की शादी की
शुभ घडी है आई !
उजली पोशाकों में,
तारे सजे बाराती है
ढोल नगाड़े बाजे बजते है
झुमझुम कर ताल पर बाराती
सब नाचते है
आतिश अनारों के साथ
जब फुलझड़ियाँ छुटती है
झिलमिल रौशनिसे
धरती आकाश नहाते है
सजधज कर युवतियां जब
मटक-मटक कर चलती है
अनब्याहे यूवावों के दिल
धड़क -धड़क जाते है
पूनम की रात है मेहमानोंका
स्वागत है!
दुल्हन के घरवाले
दुल्हे वलोंकों
चांदी की सुराई से
चांदी के प्यालों में भरभर कर
शरबत पिलाते है
बादल कहार गगन की डोली
सितारों जड़े घूँघट में
दुल्हन शरमाई
मंगल धुन बजी शहनाई
चंदामामा की शादी की
शुभ घडी है आई !
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