प्रिय तुम छिपो चाहे जहाँ
जिस रूप में भी, सहज
मै तुम्हे पहचान लुंगी
हम दोनों में भेद कहाँ ?
तुम सत्य शिव सुंदर और मै
पार्वति शक्ति स्वरूपा !
तुम मुक्त पुरुष और मै
प्रकृति प्रेम-जंजीर !
तुम इश्वर निराकार
मै जग में व्याप्त मोह-माया !
तुम भवसागर हो दुस्तर
मै कल-कल बहती सरिता !
तुम प्रेम मै शांति
तुम ज्ञान मै भक्ति
तुम योग मै सिद्धि
तुम नर्तक और मै
नुपूर ध्वनि !
तुम चित्रकार मै तुलिका
तुम शब्द मै भावना
तुम कवियों के कवि
शिरोमणी और मै
तुम्हारी मनभावन
कविता !