शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

आधुनिक नारी तुमने .....

हे आधुनिक नारी
तुमने,
ये क्रांति का कैसा
बिगुल बजाया है
पब,पार्टियों की
शोभा बनकर
हाथ में शराब
और सिगरेट लिये
पुरुषों से समान
हक्क पाने का !
अब कैसे कोई
तेरे प्यार में,
कवि बनेगा !
कैसे लिखेगा
कालिदास तुमपर
 कविता !

बुधवार, 17 अगस्त 2011

मन के निविड़ एकांत में .......

छुट जाने दो
सब परिधियाँ
शब्द, संवाद
विविध भावनाओं का
व्यापार !
प्रतिपल बढ़ता
रात का सन्नाटा
और सन्नाटे में,
अपने ही मन के
निविड़ एकांत में,
अंतर्लीन-सी
डूब जाऊं मै
और सुनती रहूँ
चुपचाप रात के 
सन्नाटे की
अपनी जुबांन !

रविवार, 7 अगस्त 2011

हिटलर की तरह पेश न आएँ......

आजादी प्रत्येक मनुष्य का स्वाभाविक गुण है! छोटेसे छोटा बच्चा भी अपने ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं स्वीकारता ! हर बच्चे को अपनी पसंद का खाने, खेलने, पढने, टी.वी. पर मनपसंद प्रोग्राम देखने, यहाँ तक कि अपने मन मुताबिक सोचने का अधिकार और आजादी होनी चाहिए !

माता-पिता घर में एक प्रकार का अनुशासन बना देते है, नियम, कायदे-कानून बना देते है ! जो वे कहते है,वही करो ! जहाँ वे चलाएं,वही चलो ! जो वे बताएं,वही देखो ! हर पल माता-पिता के इशारे पर चलना बच्चों को अच्छा नहीं लगता !उनको ऐसा लगता है जैसे हमारा अपना कोई वजूद ही नहीं है ! इस प्रकार के अनुशासन से बच्चों के अहंकार को चोट पहुँचती है ! और सारा अनुशासन, सारी व्यवस्था बोझ-सी लगने लगती है! आगे चलकर इसी व्यवस्था के विरोध में वे खड़े हो जाते है ! नतीजा यह होता है कि बच्चे चिडचिडे, जिद्दी बन जाते है और अपने माता-पिता कि आज्ञा का उल्लंघन करने में भी नहीं हिचकते ! उनको लगता है कि हमारी भावनाओं को दबाया जा रहा है ! हमें किसी भी बात कि आजादी नहीं है ! घर उन्हें कारागृह के समान लगने लगता है !

मुझे लगता है माता-पिता और बच्चों के बीच थोडीसी समझदारी हो ! माता-पिता अपने बच्चों कि भावनाओं क़ी कद्र करे ! उनके मनोभाओं को समझे ! डांटने क़ी बजाय प्यार से समझायें कि उनके लिये क्या अच्छा है और क्या बुरा है? क्योंकि बच्चे मानसिक रूप से अपरिपक्व होते है ! उनको अगर आप लॉजिकली समझायेंगे, तो वे जरुर समझ जायेंगे ! टी.वी. पर आजकल "कार्टून नेटवर्क" के जरिए बहुत सी ज्ञानवर्धक बाते सिखाई जाती है ! स्कूल से आते ही थोड़ी देर टी.वी. देखने में कोई बुराई नहीं है ! थोडा-बहुत मनोरंजन मन को हल्का और प्रसन्न बना देता है ! दिन भर क़ी सारी थकान दूर हो जाती है !

सबको आजादी से रहना पसंद है पर इसका यह मतलब नहीं है कि बच्चे बेलगाम हो जाएं और आजादी का दुरूपयोग करे ! थोडा तो अनुशासन जीवन में होना बहुत जरुरी है ! वरना जीवन में कामयाबी कैसे हासिल होगी भला ? हर माता-पिता क़ी यही इच्छा होती है क़ी अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनायें ! इसके लिये वे कितनी ही कठिनाइयों का सामना करते है ! बच्चों को भी चाहिए अपने माता-पिता क़ी भावनाओं को समझे ! उनके सपनों को साकार करे, ताकि समाज में उनके माता-पिता का नाम हर कोई आदर से ले सके !

अत: मेरा निवेदन यही है कि माता-पिता अपने बच्चों से हिटलर कि तरह नही, एक दोस्त कि तरह पेश आएं ! ताकि वे आपके सारे सपनों को साकार कर सके ! यही आजादी जीवन में व्यक्ति के, चरित्र को बनाने और बिगाड़ने का कारण बन सकती है !