ना कुछ सीखना,
ना समर कैंप में जाना
मुझे तो छुट्टियों में
नानी के गाँव है जाना ...
जहाँ,
कल-कल नदी एक बहती
मधुर नाद सुनाती रहती
गीली रेत पर नंगे पैर चलना
ढेर सारी है सीपियाँ बटोरना
नानी के गाँव है जाना ...
शीतल स्पर्श वह पानी का
पैरों को गुदगुदाना मछलियों का
आटे की गोलियाँ बना-बनाकर
उनको है खिलाना
नानी के गाँव है जाना ...
हरी-भरी वनराई और
वनराई में गूँजता है जब
चरवाहे के बन्सी का स्वर
नाच उठता मन मयूर
वन-उपवन में है विचरना
नानी के गाँव है जाना ....
आमों की अमराई
और ममता की छाँव
भोले-भाले लोग
प्यारा-सा वो गाँव
डफली की ताल पर
लोकगीत है सुनना
नानी के गाँव है जाना ...!!