ख्याल कभी मेरे ...
हो मौन कभी मुखर
चेतना से इंधन
डलवा कर ...
चमचमाती, कीमती
मोटर, गाड़ियों की तरह
राज पथ पर (हाई वे)
दौड़ते है, कभी खुद
पगडंडी बन किसी गाँव
क़स्बे में पहुँच जाते !
कभी फूल- से नाजुक
तितलियों से चंचल
फूल-फूल पर मंडरा कर
पंख अपने रंग लेते !
कभी सूरज के प्रखर
ताप से पिघल कर
बाष्प बन हृदयाकाश में
भाव की बदली बन
छा जाते, बरस जाते
मन के आंगन में,
अनायास ही
गीत स्वयं बन जाते
ख्याल मेरे कभी ........!!