ऐ चाँद आसमा के
जब भी तुम अपनी
चांदनी से मिलने
नील गगन में
आ जाते हो
सारा अस्तित्व जैसे
दुधिया गंगा में
पोर-पोर
नहा जाता है
चटक कर कलियाँ
फूल बन खिल
जाती है !
मदमस्त होकर सुरभि
हवाओं में सौरभ
भर देती है !
लिये पलकों पर
स्वप्न सिंदूरी
चाँद की बांह में
चांदनी सुरमई
हो जाती है !
भोर प्रात में जब
चांदनी से बिछड़ कर
घडी भर भी रुकते
नहीं हो न चाँद,
तब धरती के
पात-पात पर
शबनम मोती-सी
बिखर जाती है !
चांदनी के आंसू ही
शबनम नहीं तो
और क्या है !