जीवन कि रिक्त पाटीपर
इन्द्रधनुषी रंग भरने ,
जब तब चली आती है
मेरी कविता
जब मनपर छाई हो उदासी
डराती हो मुझको मेरी ही तनहाई
तब शब्द गंधा बनकर ,
मुझको बहलाने चली आती है
मेरी कविता
कभी खुशियोंके हिंडोले पर झुलाती
धड़कन में कस्तूरी सी घोल जाती
खिल जाती मन आंगन कि ,
पूलवारी,
तब रजनीगंधा बन कर,
मेरे घर को महकाने चली आती है
मेरी कविता!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें