सोमवार, 7 दिसंबर 2009

पलछिन

रुतु ने करवट बदली
मौसम हुवा रंगीला
सरसर -सरसर बहती
ठंडी चले पुरवा
कंपकपाती सर्द हवा
शीतल सब गात
धरती के आगोश में
ऊँघ रही है रात
उलझी-उलझी अलके
अलसाये नयन
उस पर याद
तुम्हारी आयी
भटक गया पलभर
न जाने कहाँ ये
स्वप्न पंखी मन
पलकों पर ठहर गया
कोई अंजाना स्वप्न
मानो ठिटक पल में छीन गया !

1 टिप्पणी:

akanksha ने कहा…

bahut hi umda likti hain app
mujhe bhi likhne ka shaukh hai
agar aap mujhe apni email id bhej den to mai aapko kuch apke margdarshan k liye bhejna chahti hun