प्रेमग्रन्थ
जितने भी लिख डालो
प्रेमग्रंथ !
प्रेम का स्वाद कुछ
समझ न आता
दिल
प्यासा का प्यासा !
(२)
ऐ मुहब्बत
दिल में ही, रहो
कैद !
अच्छा नहीं लगता
यहाँ-वहां झांकना
तुम्हारा !
(३)
बुद्धिवादी युग में,
निरंतर विचार,शब्द,ध्वनि
के आघात से,
सिर्फ शब्दकोष में,
रह गई है
शांति !
12 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर!
सादर
ऐ मुहब्बत
दिल में ही, रहो
कैद !
अच्छा नहीं लगता
यहाँ-वहां झांकना
तुम्हारा !
kya dekhna , raho n bheetar ... bahut badhiyaa
वाह सुमन जी आज तो नया अंदाज है । प्यार मुहब्बत के सिवा इस दुनिया में रख्खा क्या है ।
बुद्धिवादी युग में,
निरंतर विचार,शब्द,ध्वनि
के आघात से,
सिर्फ शब्दकोष में,
रह गई है
शांति !
बहुत बढ़िया ...सुमन जी
अच्छी क्षणिकाएं॥ बधाई सुमन जी॥
बहुत उम्दा.तीसरी तो बहुत ही उम्दा.
ऐ मुहब्बत
दिल में ही, रहो
कैद !
अच्छा नहीं लगता
यहाँ-वहां झांकना
तुम्हारा !
kya bat hai suman ji bahut achhe
बुद्धिवादी युग में,
निरंतर विचार,शब्द,ध्वनि
के आघात से,
सिर्फ शब्दकोष में,
रह गई है
शांति ...
बहुत लाजवाब ... सच है शांति अब शब्द कोष में ही है ...
kshanikayen bahut badhiya hai...dil mein hi muhabbat rahe to accha hai...idhar udhar jhankne se uski mahatta kam ho jaati hai.
Suman ji,yeh tasveer san 1988 ki bani hai...vivahparant yah vada kiye huye ki ek duje
ke liye hain aur rahenge...iss sketch mein 2 chehre husband wife ke prominently ek duje ke concept ko jeete huye hain ,...anya rishton ki bhumika background me chhipe kuchh chehron ke madhyam se vyakt ki gayee hai.
meri kavitaon ki bhi samalochna kar sakti hain aap...kuchh kahi kuchh ankahi pe jakar.
dhanyavaad
४ अप्रैल २०११ ९:५३ अपराह्न
एक टिप्पणी भेजें
दिले नादां तुझे हुआ क्या है ?
आदरणीय सुमन जी
सभी की सभी क्षणिकाएं गहरे अर्थ संप्रेषित करती हैं ....आपका आभार
एक टिप्पणी भेजें