आइये कभी,
ये है हमारा छोटा, प्यारा घर
"स्वीट होम " लिखा है दरवाजे
पर !
इधर फाइलों में उलझे है पापा
कोर्ट - कचहरी का उनका पेशा,
बिज़ी रहते है हमेशा !
उधर, किचन में हलवा बना
रही है मम्मी
प्यार में उसके नहीं है कोई
कमी !
उस स्टडी रूम में भैय्या है पढता
केरियर की उसको खाती
चिंता !
कभी - कभार ही मुझसे है मिल
पाता !
दूर कोने में मै, अकेली उदास
तभी कविता मेरे आती है पास
मन की सारी बात वह जान
जाती है
चुपके - से कान में, मेरे कुछ
कह जाती है !
14 टिप्पणियां:
घर / घर के सदस्यों से तआर्रुफ़ और प्यारी-सी बाल कविता सभी कुछ बहुत बढ़िया लगा.
kavita aati hai n , jo ungli thaam hum tak le aati hai...
कविता आपकी अच्छी सहेली सिद्ध हो रही है सुन्दर बाल कविता .....
बड़ी प्यारी बाल कविता है सुमनजी.....
sundr kvita suman ji bahut bahut bdhai
sundr kvita suman ji bahut bahut bdhai
मजेदार ...प्यारी कविता
अरे नन्हे दोस्त आप भी आ गए!
बहुत सारा स्नेह आपको, दरअसल ये कविता
आप जैसे छोटे बच्चोंके लिए ही, लिखी है मैंने!
बड़ोंके कामकाज में अक्सर उनकी उपेक्षा होती हुई
मैंने देखी है !
तोड़ने की साजिशें हैं
हर तरफ़,
है बहुत अचरज
कि फिर भी
घर बसे हैं,
घर बचे हैं!
[ताकी सनद रहे- ऋषभ देव शर्मा]
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Suman ji ,
very innocent and sweet creation .
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बहुत सुन्दर प्यारी सी कविता के लिए बधाई !
धन्यवाद सुमन जी आपकी सराहना के लिए...आपकी कविता हकीकत के बहुत करीब ढली होती है...सहज और भावपूर्ण...
badee sunder bal bhavo kee abhivykti .
बहुत प्यारी कविता जिसमें पूरे परिवार का परिचय हो गया ।
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