दूर गगन के टिम-टिम तारे
मुझसे बोले ....
आओं परियों के देश चले !
चंदा बोला ...
चलो चले
बादलों में दौड़ लगायें !
फ़ूल बोले ....
बाग़ में आओं
संग हमारे खिलखिलाओ !
तितली बोली ....
क्यों न खेले
तुम-हम आँखमिचौली !
कोयल बोली ....
छोड़ो पढना
सुर-में-सुर मिलाकर गायें गाना
मौसम आया है सुहाना !
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13 टिप्पणियां:
यह कार्य सच में खूब प्रभावित कर रहा है |
बच्चों के लिए लिखना, लगातार लिखना --
बधाई ||
प्रेरक - शास्त्री जी और शर्मा जी
(1)
आजा वापस प्यारे बचपन,
पचपन बड़ा सताए रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा
मन-गठिया तडपाये रे |
भटक-भटक के अटक रहा ये-
जिधर इसे कुछ भाये रे |
आजा वापस प्यारे बचपन,
पचपन बड़ा सताए रे ||1||
(2)
बच्चों के संग अपना जीवन,
मस्ती भरा बिताया रे |
रोज साथ में खेलकूद कर
नीति-नियम सिखलाया रे |
माता वैरी, शत्रु पिता जो
बच्चे नहीं पढाया रे |
तन्मयता से एक-एक को
डिग्री बड़ी दिलाया रे ||2||
(3)
गये सभी परदेस कमाने
विरह-गीत मन गाये रे |
रूप बदल के आजा बचपन
बाबा बहुत बुलाये रे |
गठिया की पीड़ा से ज्यादा
मन-गठिया तडपाये रे |
आजा वापस प्यारे बचपन,
पचपन बड़ा सताए रे ||3||
बहुत खूब! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
beautiful !!
कोयल की बात माननी चाहिए | अच्छा बालगीत , बधाई
suman ji
bahut hi sundar ,nisandeh bahut hi pyari lagi aapki yah bachpan ki lori si yaad dilaati baal rachna
bahut bahut badhai
poonam
सुंदर बाल कविता के लिए बधाई॥
क्या बात है,बहुत सुन्दर बाल कविता.
सुंदर बाल कविता के लिए बधाई॥...
ati sunder...
वाकई, बहुत सुंदर रचना।
बचपन को उसकी सम्पूर्णता में जीने के लिए भी अब जद्दोजहद करनी पड़ रही है। कहीं ये बातें किताबों का हिस्सा बन कर ही न रह जाएं।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 04- 08 - 2011 को यहाँ भी है
नयी पुरानी हल चल में आज- अपना अपना आनन्द -
जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
परये तो बताइए कि चित्र देख कर कविता लिखी है या लिख कर चित्र ढूँढा है...
कुँवर जी,
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